तेरे बाद भी ज़िंदा हूँ, क्या हाल कहूँ,
हर सांस अधूरी है, ये सवाल कहूँ?
छूटा जो तेरा हाथ तो मेरी रूह टूट गई
अब खुद को ही कैसे मैं ख़याल कहूँ?
तेरी यादें लिपटी हैं इस चादर में,
इन सर्द हवाओं को भी बेमिसाल कहूँ?
तू गई तो हर चीज़ चुपचाप हुई,
अब किसको सवेरा, किसे शाम कहूँ?
तेरे बिना कुछ भी तो मेरा नहीं,
इन सूनी गलियों को क्या ग़ज़ाल कहूँ?
तेरे हँसने की गूंज है अब भी कहीं,
उस आवाज़ को कैसे मैं मलाल कहूँ?
मैं तन्हा हूँ मगर तन्हा भी नहीं,
तेरी परछाईं को क्या कमाल कहूँ?
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