एक पिता की अपनी विशेष बेटी के नाम भावनात्मक कविता
I.
तू आई…
मौन सी,
जैसे हवा भी सहम गई हो।
न कोई पहली चीख,
न कोई रोने की आवाज़।
सिर्फ़ एक ख़ामोशी थी—
गहरी, भारी, बिन उत्तर।
मैंने तेरा नाम भी नहीं लिया था अभी,
और तू…
जैसे आधे आकाश में अटकी थी,
एक साँस और मृत्यु के बीच।
तेरी माँ की हथेलियों में प्रार्थनाएँ जल रही थीं,
डॉक्टरों की उंगलियाँ
जीवन को वापस खींच रही थीं।
फिर—
एक हिलती पलकों सी हलचल,
एक कंपकपाती साँस,
और तू लौटी…
नन्हीं, पर किसी चमत्कार की तरह।
II.
तू समय की धुन से अलग थी,
ना वैसे बढ़ी जैसे और बच्चे बढ़ते हैं।
तेरे शब्द धीरे आये,
तेरे क़दम लड़खड़ा कर।
पर तेरा प्रेम—
वो सबसे पहले आया।
तेरे भीतर एक संगीत था
जो सुना नहीं जाता,
बस महसूस होता।
जब राग बजते,
तेरे भीतर कोई लहर उठती,
और तेरी उँगलियाँ
ध्यान की मुद्रा में काँप उठतीं।
तू अपनी दुनिया में थी—
जहाँ शब्द कम,
लेकिन संवेदनाएँ अथाह थीं।
III.
लोगों ने तुझे नाम दिए—
"विशेष", "धीमी",
कुछ ने चुपके से तुझे "कमज़ोर" भी कहा।
पर तू…
मुझे जीवन के उन अर्थों से मिलवाती रही
जो किताबों में नहीं मिलते।
तेरे मौन ने
मेरी आत्मा में भाषा बोई।
तेरी हर मुस्कान
मेरे टूटते विश्वास को जोड़ती रही।
IV.
तेरी माँ ने तुझमें माँ होना सीखा,
तेरे भाई ने तुझमें धैर्य।
और मैंने—
तुझमें
प्रेम की शुद्धतम परिभाषा।
तू हमारे घर की गति बन गई,
धीमी,
पर स्थिर।
जैसे कोई दीप
जो बिना हवा के भी जलता है।
V.
कभी-कभी जब तू मेरी उँगली पकड़ लेती,
तो लगता मैं समय की सीमा से बाहर हूँ—
जहाँ न अतीत है,
न भविष्य—
सिर्फ़ तू और मैं,
एक शांति में।
VI.
तू बोल नहीं पाती हर बार,
लेकिन जब तू देखती है—
उस नज़र में
इतना प्रेम होता है
कि मैं घुल जाता हूँ।
तेरे हर दिन में
एक शिक्षा छिपी होती है—
स्वीकार की,
समर्पण की,
और उस मौन प्रेम की
जो शोर मचाए बिना भी
जीवन बदल देता है।
VII.
तू हमारी कमज़ोरी नहीं,
हमारी गहराई है।
तू एक नाज़ुक रचना है,
जिसमें ईश्वर ने
अपनी सबसे कोमल साँसें भरी हैं।
हमारा घर
तेरे साथ
एक मंदिर बन गया है।
VIII.
अगर ईश्वर मुझे दोबारा चुनने दे,
तो मैं फिर तुझे ही चुनूँगा—
तेरी धीमी चाल,
तेरी मंद मुस्कान,
तेरी अलग भाषा—
सबकुछ।
तू हमारी प्रार्थनाओं की संतान है,
हमारे धैर्य की कविता,
और हमारे प्रेम का सबसे शुद्ध रूप।
IX.
तू पूरी है…
जैसी है,
वैसे ही।
ना कुछ जोड़ना है,
ना कुछ घटाना।
और जब तू मेरी ओर देखती है—
बिना कुछ कहे,
तो मैं जान जाता हूँ—
मैं किसी स्वर्ग की गोद में हूँ।
हमेशा तेरा,
तेरे जीवन के हर मौन में सुनता हुआ—
तेरा पापा
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