अगर कोई ज़ोर देकर पूछेगा
हमारी मोहब्बत की कहानी,
हम धीरे से कहेंगे —
एक मुलाक़ात को तरस गए।
ना नाम लिखा कहीं,
ना तस्वीर रही कोई,
बस इक अहसास था
जो साँसों में उतर गया।
वो आई नहीं कभी,
पर उसकी आहटें रहीं,
हर ख़ामोशी के पीछे
उसकी आवाज़ छुपी मिली।
हमने वक़्त से नहीं कहा,
पर हर घड़ी रुक गई,
उसकी एक झलक की
उम्मीद में ठहर गई।
ना कोई वादा,
ना कोई किस्सा अधूरा,
फिर भी हर पल
उसी की याद से भर गया।
जिसे छू न सके हम,
उसे जीते रहे हर रोज़,
जिसे खोया नहीं कभी,
उसी का ग़म लिए फिरते रहे।
लोग पूछते हैं —
कब हुआ इश्क़?
हम कहते हैं —
जब पहली बार देखा और
कहा कुछ भी नहीं।
उसने कुछ नहीं कहा,
हमने भी ख़ामोश रहकर
सब कुछ कह दिया।
मोहब्बत थी —
पर किसी किताब में नहीं,
मोहब्बत थी —
पर किसी अंजाम में नहीं।
हर ख़ुशी से पहले
उसका ख्याल आया,
हर आँसू के बाद
उसका नाम रह गया।
वो जो लम्हा था —
जिसमें हम कभी साथ थे नहीं,
वो ही सबसे लंबी
याद बन गया।
हमने किसी से नहीं कहा,
मगर हर बार
दिल ने उसी को पुकारा
वो जो नहीं था पास,
उसी से सारी बातें होती रहीं,
और फिर भी
सबको लगा हम तनहा हैं।
अगर कोई ज़ोर देकर पूछेगा
हमारी मोहब्बत की दास्तान,
हम बहुत धीरे से,
बहुत थके से लहजे में कहेंगे —
हम तो बस… एक मुलाक़ात को तरस गए।
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