एक पिता की बेटी के नाम काव्य में सजी प्रेम-पत्र
जब तू आई थी मेरी बाँहों में,
एक फूल सी, भीनी खुशबू में,
जैसे ईश्वर ने मेरे जीवन को
अपना सबसे सुंदर वरदान सौंप दिया हो।
तेरे रोने की पहली आवाज़
मेरे जीवन का सबसे मधुर राग बन गई।
तेरी माँ की थकी आँखों में
पहली बार मैंने स्वर्ग को झाँकते देखा।
तेरे पहले क़दमों की आहट
जैसे मेरे जीवन में
एक नई ऋतु की दस्तक हो।
तेरे पहले "पापा" कहने से
मैं केवल पिता नहीं रहा —
मैं संपूर्ण हो गया।
तू बड़ी होती गई —
गुड़ियों के घर से लेकर
तितलियों के पीछे भागने तक,
हर मोड़ पर
तेरी हँसी मुझे नया जीवन देती रही।
तेरी चोटों पर फूँक मारना
मुझे खुद को ठीक करना लगता था।
तेरी छोटी-छोटी जीतें
मेरे लिए जश्न बन जाती थीं।
कभी स्कूल से
तू अपने पहले पुरस्कार के साथ आई,
तो मैंने देखा—
दुनिया का सबसे कीमती पदक
तेरे गले में नहीं,
मेरे दिल में लटका है।
फिर तू और बड़ी हुई,
बातों में तर्क आया,
आँखों में स्वप्न,
कभी चिढ़ गई मुझसे,
तो कभी बाँहों में छुपकर रोई।
तेरे हर उतार-चढ़ाव में
मैंने तुझमें खुद को खोजना शुरू किया।
तेरा साहस मेरा संबल बना,
तेरी मुस्कान मेरी पूँजी।
लोग कहते हैं,
बेटियाँ पराया धन होती हैं।
पर तू—
तू तो मेरे आत्मसम्मान की धुरी बन गई।
जब तू मेरे साथ कहीं जाती है,
लोग मेरी पीठ पर हाथ रखते हैं—
"आपकी बेटी है? कितनी समझदार है!"
और मैं…
मैं भीतर ही भीतर
ईश्वर का धन्यवाद करता हूँ।
तूने मुझे हर जगह
सम्मान दिलाया—
चुपचाप, मुस्कुराते हुए,
बिना कुछ माँगे।
तेरे कारण ही
लोग मुझे अच्छा पिता मानते हैं,
तेरे कारण ही
मेरे जीवन की छवि साफ़ और उज्ज्वल दिखती है।
मेरी प्यारी बेटी
तू मेरी शान है,
मेरी दुनिया की सबसे सुंदर कविता।
तेरे आँचल में जो भाव हैं,
वो किसी किताब में नहीं मिलते।
तू चाहे ग़लतियाँ कर,
कभी हार भी मान ले—
मैं हमेशा तेरा हूँ,
तेरे पीछे खड़ा,
तेरे हर डर का पहरेदार।
मुझे तुझ पर गर्व है—
तेरी मासूमियत पर,
तेरे सपनों पर,
तेरे संघर्षों और सहनशीलता पर।
तू बड़ी हो गई है,
अब तेरी दुनिया औरों से भी जुड़ रही है,
पर जान ले,
तेरी जड़ें मेरे सीने में गहरी हैं।
अगर कभी तुझे लगे
कि दुनिया समझ नहीं रही तुझे—
तो लौट आना मेरे पास।
मेरे शब्द नहीं,
मेरी आँखें तुझे फिर से भरोसा देंगी।
तू मेरी संतान नहीं,
मेरी कविता है—
जो हर सुबह मेरे भीतर गूँजती है।
तेरे नाम से ही
मेरी पहचान बनती है—
"वो जो फलाँ बेटी के पिता हैं।"
और इस एक वाक्य में
मुझे ब्रह्मांड की सारी उपलब्धियाँ मिल जाती हैं।
तेरे पापा की तरफ़ से,
हर साँस, हर शब्द,
हर गर्व, हर प्रेम—
सिर्फ़ तुझे समर्पित।
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