Monday, 9 June 2025

जब पहली बार तुम्हें देखा

 (प्रेम की पहली दस्तक का गीत)

जब पहली बार तुम्हें देखा,
जैसे ठहर गया हर एक लेखा,
साँसों ने अपना गीत भुलाया,
समय ने चलना तक सिखाया।

तुम्हारी आँखों में जो चमक थी,
जैसे रातें खुद चाँद से सजी थीं,
उनमें कोई गहराई थी ऐसी,
जैसे आत्मा कोई कह रही हो वैसी।

ना बात हुई, ना शब्द बहे,
फिर भी मन में दीपक जले,
एक झलक, बस एक ही नजर,
और जीवन बन गया समर्पण का सफर।

भीड़ थी चारों ओर खड़ी,
पर मेरी नज़र सिर्फ तुम पर पड़ी,
तुम — मेरी दिशा, मेरा प्रकाश,
हर धड़कन में तुम्हारा आभास।

एक अजनबी, फिर भी अपना सा,
जैसे जन्मों से जुड़ा सपना सा,
तारों ने जैसे राह बनाई,
हर पीड़ा से रेखा खिंचवाई।

एक पल को सारा जग रुका,
प्रेम ने फिर जीवन को छुआ,
तुम आई और सब कुछ बदला,
हृदय का मंदिर फिर से उजला।

मेरी जान, मेरी साँस, मेरी धड़कन,
तुमसे शुरू हो मेरी हर दर्पण,
तुम्हारी मुस्कान, जैसे राग कोई,
हर शब्द में बसते अनुराग कई।

तुम्हारी हँसी में सुबहें खिलीं,
पुरानी रातें कहीं गुम सी मिलीं,
जो दर्द थे, वो पिघल गए,
तेरे स्पर्श में सब हल हुए।

दुनिया ने फिर गति पाई,
पर मेरी दुनिया तो तुम ही आई,
उस पहली झलक के बाद से मैं,
तेरे प्रेम में पूर्ण हुआ क्षण में।

ना तर्क, ना समय की जरूरत रही,
सिर्फ दिल की वो पुकार सही,
एक चिंगारी, एक नज़र में आग,
बिन शब्दों के बन गया अनुराग।

और तब से लेकर आज तलक,
हर लम्हा तेरा ही है संवलक,
तू सिर्फ प्यार नहीं — मेरी तक़दीर है,
उस पहली दृष्टि की अमर तसवीर है।

तू वो नाम है जो मौन ने जपा,
वो ख्वाब जिसे हर नींद ने रखा,
तू मेरा अक्स, मेरी पहचान,
पहली नज़र का अनंत सम्मान।


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