दिन गुज़र गए
सदियाँ बीत गयीं
तुम जो गए
ज़िन्दगी बीत गयी
जुदाई के लम्हों में
तन्हाई की घड़ियों में
बस तुम ही तुम थे
बहुत करीब
इस दिल के बहुत करीब
फिर वो दिन भी आया
जिसकी हर रात
दुआ बनकर
आँखों से निकली थी।
जब तू
सामने थी —
न कुछ कहना पड़ा,
न कुछ सुनना पड़ा...
बस ख़ामोशी
बोल उठी —
"हम अब भी वही हैं।"
तेरे लबों पर
जो मुस्कान थी,
वही पुरानी थी —
मगर अब उसमें
एक नया सुकून था।
तेरी आँखों में
वही सवाल थे
जो मेरी रूह
सालों से पूछ रही थी —
"क्या अब भी…?"
और मैंने
पलकों को झुकाकर
बस इतना कहा —
"हम तो आज भी वहीं हैं
जहाँ तुमने छोड़ा था।"
तेरे क़दम
धीरे-धीरे
मेरे वजूद के पास आए,
और सारा शहर
साँस रोककर
देखता रह गया।
हवाओं ने
उस पल
कुछ नहीं कहा,
बस
तेरे दुपट्टे को
मेरे दिल से
लिपटा दिया।
फूल
बोलने लगे,
बारिश
ठहर गई,
और वक़्त —
वो तो
तेरी मुस्कान में
ठहर ही गया।
हमने
न कोई गिला किया,
न शिकवा जताया —
बस
उम्र भर की जुदाई को
एक नज़र में
माफ़ कर दिया।
तेरा हाथ
फिर मेरी उँगलियों में आया
जैसे कोई भूला हुआ वादा
फिर से निभाया गया हो।
अब कोई वादा नहीं किया,
बस
ये जान लिया —
इस बार साथ हैं,
तो आख़िरी साँस तक साथ रहेंगे।
और अब इस बार..
इस बार
ना लफ़्ज़ कम होंगे,
ना लम्हे अधूरे,
ना दिल डरते रहेंगे
कल की परछाइयों से।
इस बार
तेरी पलकों पर
नींद भी महफ़ूज़ होगी,
और मेरी रूह को
तू हर रोज़
जगाया करेगी।
अब मोहब्बत
इज़हार की मोहताज नहीं,
अब मोहब्बत
तेरा होना है —
मेरे साथ,
मेरे पास,
हर साँस में,
हर वक़्त।
No comments:
Post a Comment