चले तो फासला
तय हो न पाया
लम्हों का,
रुके तो
पाँव से आगे
निकल गईं सदियाँ
तेरे जाने के बाद
सब कुछ ठहर गया,
रंग, हवा,
यहाँ तक कि
आइनों ने भी
चेहरा दिखाना छोड़ दिया।
हर गली
तेरा नाम पुकारती है,
हर शाम
तेरे ख़तों की तरह
सुनसान लगती है।
हर ठहरी हुई शाम
तेरा नाम
लेती रही,
और हर रात
तेरी बातों से
नींद चुराती रही...
तेरी यादें
बिना दस्तक
दिल में दाख़िल होती हैं —
कुछ सवालों की तरह,
कुछ इबादतों की तरह।
वो नाम
जिसे लबों ने
कभी पुकारा न था,
दिल ने
उसे उम्र भर
तेरे रूप में जिया।
अब अगर
कभी फिर
मिलना हो —
तो न सवाल पूछना,
न जवाब देना...
इस बार
ना लफ़्ज़ कम होंगे,
ना लम्हे अधूरे,
ना दिल डरते रहेंगे
कल की परछाइयों से।
फिर तेरे साथ
तेरे साथ
हर साँस
सुकून बन गई,
हर दिन
इबादत —
और हर रात
मोहब्बत का सजदा।
समर्पण
"उन लम्हों के नाम
जो मेरे नहीं थे,
मगर मेरे दिल में
हमेशा तेरे ही थे..."
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