चले तो फासला
न तय हो पाया
लम्हों का...
रुके तो
पाँव से आगे
सदियाँ निकल गईं
हर क़दम पर
कोई मोड़ था
जो दिल को
थाम लेता था,
हर मोड़ पर
तेरी यादों का
कोई साया
ठहरा सा रहता था।
राहें पूछती रहीं
किधर है मंज़िल,
हम चुप थे
क्यूँकि
मंज़िल भी
तेरा नाम थी।
वक़्त की रेत पर
हमने जो ख़्वाब उकेरे थे,
एक झोंके ने
उड़ा दिए
बग़ैर पूछे।
कभी सोचते हैं —
क्या काश!
हम थमे न होते...
या यूँ ही चलते रहते
बेख़बर से
ख़्वाबों की गर्द में।
मगर रुकना भी तो
इक इबादत थी,
जहाँ साँसें
तेरे इंतज़ार में
सजदा करती थीं।
कुछ ग़ुज़र गया
यूँ ही
बातों में,
कुछ
ख़ुद को समझाने
की कोशिशों में।
एक पल में
बसी थी तू,
एक उम्र लगी
उसे समझने में।
हमने
मुलाक़ातों से
ज़्यादा
जुदाई में
तुझे जिया है
हर ठहरी हुई शाम
तेरा नाम
लेती रही,
और हर रात
तेरी बातों से
नींद चुराती रही।
नज़्में जो हमने
कभी साथ गुनगुनाई थीं,
अब वो
अकेले गुनगुनाते हैं
आँखों में नमी लेकर।
अब भी जब
कोई कारवां
गुज़रता है दिल से,
हम तन्हा
एक छाँव
ढूँढते हैं...
तेरी याद की।
कभी तन्हाई
भी मोहब्बत
लगती है —
जब तेरा नाम
साथ हो।
कभी पलकों पे
गिरते थे
तेरे लफ़्ज़,
अब ख़ामोशी
भी शोर करती है
तेरे बग़ैर।
तेरे जाने के बाद
वक़्त थमा नहीं,
मगर
रूह ठहर गई
एक ही सवाल में —
"क्या तू भी
यूँ ही तड़पी होगी ?"
हमने तो
हर मौसम में
तेरा चेहरा
ढूँढा है,
बरसात में
तेरी मुस्कान,
सर्दियों में
तेरी बाँहों की गरमाहट।
तेरे बिना
हर मौसम अधूरा,
हर लम्हा
सावन सा भीगा,
हर दिन
एक सूनी किताब
जिसमें तेरा नाम
लिखा रह गया
बिना कहानी के।
कुछ रिश्ते
नाम नहीं चाहते,
बस
इक रूहानी छुअन
काफ़ी होती है
उन्हें जीने को।
हम भी
तेरे होने का
कोई सबूत नहीं रखते,
मगर दिल की हर धड़कन
तेरी गवाही देती है।
कभी तेरी यादें
बिलकुल पास
बैठ जाती हैं —
बिना दस्तक दिए,
बिना इजाज़त मांगे...
और फिर
सारे फ़ासले
बेमानी लगते हैं।
तेरी आवाज़
अब भी
कानों में
गूंजती है —
जैसे
हर सुबह का उजाला
तेरे नाम से जागे।
तेरे जाने के बाद
हमने सीखा है —
अकेले रहकर
भी मोहब्बत की जाती है,
और बग़ैर छुए
भी किसी को
ज़िंदगी बनाया जा सकता है।
और अब...
अब अगर
कभी फिर
मिलना हो —
तो न सवाल पूछना,
न जवाब देना...
बस आँखों से
वो सब कह देना
जो उम्र भर
दिल में पलता रहा।
क्यूँकि
कभी-कभी
मोहब्बत को
लफ़्ज़ों की नहीं,
सिर्फ़ एक नज़र की
ज़रूरत होती है।
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