Thursday, 19 June 2025

रूहों का मिलन - एक रूहानी दास्तान इश्क़ की


चुप थी फ़िज़ा,
ख़ामोश थे जज़्बात,
तन्हा थी रूहें...
जब पहली बार
तेरी नज़रों से मेरी रूह टकराई।

न कोई लफ़्ज़ कहा,
न कोई साज़ बजा,
बस एक लम्हा
जो सदियों सा ठहर गया —
रूह ने रूह को पहचान लिया।

तू कोई आईना थी,
या मैं तेरा अक्स,
तेरी साँसों में
मेरी धड़कनें बसने लगीं।

इश्क़ वो नर्म धूप था
जो जज़्ब हो गया रगों में,
तेरा नाम,
मेरी ज़बान का सुकून बन गया।

हर बात में तू,
हर ख़ामोशी में हम,
तेरे लफ़्ज़ों में
मेरा वजूद घुलता गया।

हमने मोहब्बत को
सिर्फ़ चाहा नहीं,
इबादत की,
तस्बीह की मानिंद
तेरा ज़िक्र किया।

रातें तन्हा नहीं रहीं,
वो मेरी पलकों में
तेरे ख़्वाब रख कर जातीं,
और सहर,
तेरे मुस्कुराने सी लगती।

मगर फिर,
कहीं फ़लक पर
किसी सितारे ने करवट बदली,
और वक़्त की क़सम,
हमें जुदा होना पड़ा...

बिछड़ना,
जैसे रूह से रूह को नोच लिया हो,
तेरी यादें
धड़कनों में कांटे बन के चुभती रहीं।

हर आहट,
तेरा नाम पुकारती,
हर साया,
तेरे नक़्श-ए-क़दम की तलब में भटकता 

तेरे बिना
जिंदगी नहीं,
सिर्फ़ एक लंबा इंतज़ार थी...
इक सज़ा —
जिसमें जिए भी नहीं, मरे भी नहीं।

मगर इश्क़,
वो जुनून था
जो रूहों में जलता रहा,
और रूहें,
कभी मरती नहीं।

फिर एक रोज़
क़ायनात ने रहम खाया,
और रूहें
फिर से मिल गईं —
वो मुलाक़ात नहीं थी,
वो मुक़द्दर का फ़ैसला था।

तेरा हाथ थामा
तो लगा
जैसे मेरी रगों में
नूर बह निकला।
तेरी मुस्कान
जैसे इश्क़ ने
जन्नत का दरवाज़ा खोल दिया 

अब न कोई जुदाई,
न कोई फ़ासला,
हम रूह हैं,
रूहों को
कभी मौत नहीं आती।

तेरे साथ
मैं मैं नहीं रहा,
हम हो गए —
एक रूह, एक नफ़स,
एक दुआ।

अब जब भी कोई पूछे
इश्क़ क्या होता है —
मैं तेरा नाम लूँगा
और मेरी रूह
मुस्कुरा देगी।


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