जब पहली बार
तुम सामने आईं,
सारी दुनिया
थोड़ी देर के लिए
खामोश हो गई।
साँसें थमी,
धड़कन थमा,
मन ने कहा —
"यही है वो।"
तुम्हारी आँखें —
जैसे खामोश आसमान
किसी गहरे राज़ को
खुद में समेटे हुए।
इनकी एक झलक,
और मैं उसमें खो गया।
जैसे खुद को कहीं
पहली बार
देखा हो।
ना शब्द थे,
ना आवाज़,
फिर भी
सब कुछ कह गया।
तुम
एक अजनबी होकर भी
सबसे अपनी और दिल के सबसे करीब थी
भीड़ में
बस तुम ही
एक वो चेहरा थी
जिसमें मेरा सर्वस्व समाहित हो गया
सारी पीढ़ियाँ,
सारे जन्म
उस क्षण में
वहीँ मिलते से लगे।
वो पल —
एक द्वार सा था,
जहाँ प्यार
पहली बार
साँस लेने लगा था
तुम मुस्कुराई
और सब कुछ
सज गया।
गुज़रा हुआ हर पल
जैसे पिघलने लगा
तुम्हारी हँसी —
जैसे भोर की धूप
मेरे भीतर
अंदर तक फैल गई।
तुम कुछ भी नहीं थीं
फिर भी मेरे लिए
सब कुछ थीं।
तुम —
मेरी बातों की खामोशी,
मेरे गीतों की तान,
मेरे जीवन की धुन मेरे खुशियों का राग मेरा सब कुछ उसी पल में बन गई
मैं जान गया था —
ये पहली नज़र
सिर्फ़ नज़र नहीं थी।
ये वादा था,
एक रूह का
दूसरे रूह से।
अब तेरा नाम
मेरा हर मौन
बोलता है
हर सांस में
तेरा ही सगीत गूंजता है
तुम अजनबी नहीं,
मेरा वो सपना हो
जो मैंने जागते हुए देखा था
इस यकीन से कि तुम यहीं हो यहीं कहीं हो और मेरी नज़रें तुम्हें ढूंढ ही लेंगी
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