Saturday, 14 June 2025

दो दुनियाओं के बीच की साँस - एक पिता की बेटी के लिए कविता

 

तू आई…
न रोकर,
न शोर के साथ—
बल्कि उस चुप्पी के साथ
जो आकाश को चीर देती है।

क्षण भर को
समय थम गया था,
साँसें अटकीं,
प्रार्थनाएँ काँपीं…
मेरी बच्ची,
तू मौत की देहरी पर थी।

एक पल—छाया।
अगले ही पल—चमत्कार।
एक झपक, एक हलचल,
ज़िंदगी से जंग की शुरुआत।
और तू उठी—
एक ऐसे सवेरे की तरह,
जो होना ही नहीं था।

डॉक्टरों के हाथों,
हौसले, और दिलों ने तुझे खींचा
जीवन की ओर।
छोटी थी तू…
पर थी समूची।
अपूर्ण नहीं—
बल्कि सच्ची।

तेरे साथ,
मैंने दोबारा जीना सीखा।

तू औरों की तरह न खिली,
न किसी दौड़ में भागी,
तेरे रास्ते थे अपने,
तेरे आसमान… कुछ और।

तेरे क़दम धीमे थे,
तेरी नज़रें डगमगातीं,
पर तेरा दिल—
वो तो निर्मल झील सा था।

जहाँ दुनिया ने तुझे
कमियों में तौला,
वहाँ मैंने देखा—
तेरी आँखों में नाचते ब्रह्मांड,
तेरी साँसों में गूंजते लोरी के राग।

तू बोल नहीं सकी—
पर हर सुर को सुनती रही।
जब धुन बजती,
तेरी उँगलियाँ हिलतीं,
मानो कोई अदृश्य वीणा बज रही हो।

तेरी एक नज़र…
मुझे घुटनों पर ले आती।

कहते हैं लोग— "धीमी है,"
"अलग है…"
पर मेरी बच्ची,
तू मेरी ध्रुवतारा है।

तू धीमी ज़रूर चलती है 
पर लगातार जलती है—
एक कोमल, अनंत ज्योति।

तेरा भाई,
तुझसे खेलना सीख गया।
तेरी माँ,
तेरी चुप्पियों में गीत ढूँढती रही।
और मैं?
मैं बदल गया।
धीरे-धीरे,
तेरे स्पर्श में आकार लेता गया।

हर दिन—
एक नया पाठ,
एक नयी दृष्टि
प्रेम की।

तू दौड़ नहीं सकती,
पर हर कमरे में
पहुँच जाती है—
मन के भीतर।

तू लिख नहीं सकती,
पर हर दिन की दीवार पर
प्रीति उकेर देती है।

जब तू चुपचाप
मेरा हाथ थामती है,
दुनिया सटीक हो जाती है।

तूने मुझे डर सिखाया…
और फिर मुक्त किया।
कि टूटी उम्मीदें भी
शांति ला सकती हैं।

तूने मुझे ऐसा आनंद दिखाया
जो जीत में नहीं,
संघर्ष में जन्म लेता है।

दुनिया तुझे “कम” कहती है…
पर वो नहीं जानती—
तेरी चुप्पियों के भीतर
कैसा ज्वाला है।

तेरे हँसी के टेढ़े मेढ़े रास्ते में
तू हर दिन
प्रेम की नयी भाषा बुनती है।

तू बन गई है
हमारा मूल, हमारी वर्षा—
हमारे दुःखों की
अदृश्य औषधि।

तेरे कारण
हमारा घर
एक प्रार्थना बन गया है—
शब्दरहित,
किन्तु पूर्ण।

बेटी…
तू मेरा दूसरा जन्म है,
मूल्य की जीवित परिभाषा।

तू कोई प्रदर्शन की वस्तु नहीं—
बल्कि एक दर्पण है
जो हमें भीतर झाँकने को मजबूर करता है।

मैं चाहता कुछ बदलता नहीं,
न तेरे "औरों जैसे" होने की कामना की।
तू जैसी है…
वैसी ही मेरी दुनिया है।

तू है मेरा सितारा—
बंधा हुआ,
पर प्रकाशमान।

अगर प्रेम का कोई रूप होता…
तो वो तू होती—
अपूर्ण,
फिर भी पवित्र,
सदा सच्ची।

दुनिया देखे न देखे—
मैं जानता हूँ,
हम सब जानते हैं—
तेरा होना
एक चमत्कार है।

हर रात की ख़ामोशी में
मैं उन फ़रिश्तों का शुक्र करता हूँ
जिन्होंने तुझे हमारे साथ रहने दिया।

और अब तू है—
हमारी नन्हीं लौ।
जो सबकी तरह नहीं चमकी,
पर हमें आलोकित कर गई।

तू वो प्रेम है
जिसे शब्दों में नहीं बाँधा जा सकता—
केवल अनुभव किया जा सकता है।

बेटी…
तूने फिर से परिभाषित किया
कि सच्ची शक्ति क्या होती है,
और प्रेम
कहाँ छुपा होता है।

और अगर मुझे फिर से चुनना पड़े…
तो मैं हर बार
तुझे ही चुनूँगा—
इस पागल, कोमल,
और पवित्र यात्रा में…

तेरे साथ—
हमेशा।


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