Wednesday, 4 June 2025

चाँदनी रात और तू

 चाँदनी रात और तू — दोनों एक सी लगती हैं मुझे,


आज की रात कुछ अलग है।

चाँद ऊपर है — पूरा, सफ़ेद, शांत…

पर फिर भी मेरी आँखें उसे नहीं, तुझे ढूँढ रही हैं।


जब भी चाँद को देखता हूँ,

तेरा चेहरा सामने आ जाता है।

तेरी मुस्कान, तेरी आँखें,

तेरी वो चुप्पी जो हर शब्द से ज़्यादा बोलती है।


तेरी यादें इस रात की हवा में तैर रही हैं,

और मैं, उसी हवा में साँस ले रहा हूँ —

जैसे तू मेरे पास खड़ी हो,

नज़दीक… इतनी कि तेरी खामोशी भी सुनी जा सके।


कभी सोचता हूँ,

क्या तू भी ऐसे ही किसी चाँदनी में बैठी होगी?

क्या तुझे भी चाँद देखकर मेरी याद आती होगी?


इस रात में एक जादू है —

या शायद… तू ही वो जादू है

जिसे चाँदनी ने ओढ़ लिया है।


तेरी ज़ुल्फ़ें जैसे बादल,

तेरा चेहरा जैसे चाँद,

और तेरी नज़रें… जैसे मेरे इश्क़ की रोशनी।


काश तू इस वक्त यहाँ होती —

तो तुझे दिखाता वो चाँद

जो मुझसे जल रहा है,

क्योंकि आज रात तू उससे ज़्यादा चमक रही है।


मैं तुझसे कहता —

"तू मेरी रात की रौशनी नहीं,

तू मेरी रात ही है।

जिसमें हर ख्वाब सिर्फ तुझी से शुरू होता है,

और तुझी पर खत्म होता है।"


अब ये चाँदनी भी तेरी बातें करती है,

और मैं हर रात उसी के ज़रिए तुझसे मिलने चला आता हूँ।

चुपचाप, ख़ामोशी से,

जैसे इश्क़ खुद रोशनी ओढ़ कर बैठा हो।


चाँद के साए में लिखा,

तेरे नाम एक और रात।


सिर्फ तेरा,

जो हर रात तुझमें ही जागता है।




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