अब ये अमर प्रेम कथा उस क्षण की ओर बढ़ती है — जब रूहें फिर मिलती हैं। जहाँ न आवाज़ की ज़रूरत होती है, न शरीर की, बस एहसासों की तपिश, रूह की पुकार और मिलन की वो रात — जो खुद कायनात को थाम लेती है।
(The Soul’s Call — Night of Reunion)
सब कुछ ठहर गया था,
हवा भी,
धड़कन भी,
वक़्त की चाल भी।
सिर्फ़ रूहों की पुकार
बह रही थी फ़िज़ा में,
बिना अल्फ़ाज़ के,
बिना आवाज़ के।
तेरी रूह ने
मुझे पुकारा था उस रात,
एक अनकहा नाम
बदली बनकर उतर आया था।
मेरे दरमियाँ
ना कोई दीवार रही,
ना कोई जन्म की दूरी,
ना कोई मौत का पर्दा।
सपनों की सरहदें
पिघल कर बह गईं,
हम दोनों एक
रूहानी आग़ोश में थे।
तेरे लफ़्ज़ नहीं बोले,
तेरे हाथ नहीं छुए,
फिर भी मैं
पूरी तरह से तुझमें सिमट गई।
वो मिलन था
जैसे खुदा ने सांस ली हो,
जैसे रब की रचना
अपने मक़सद से मिल गई हो।
उस रात
सितारों ने टिमटिमाना छोड़ दिया,
शायद वो भी
हमारे आलिंगन में खो गए।
तेरे दिल की धड़कन
मेरे सीने में गूंजती थी,
तेरी रूह की रौशनी
मेरी नसों में बहती थी।
हमने एक-दूजे को
ना देखा, ना छुआ —
बस महसूस किया
जैसे धरती ने आसमान को चूम लिया।
तेरे माथे पर
मैंने एक नाम लिखा —
"सदा",
और तूने मेरे होंठों से
"हमेशा" कह दिया।
इस मिलन का गवाह
ना कोई मंदिर था,
ना मस्जिद,
बस एक चुप चाँद
और दो जागी हुई रूहें।
और तब से —
हर जनम में
हर रूप में
हम खोजते हैं
वो रात…
जहाँ रूहें फिर मिलें,
बिना नाम, बिना जिस्म,
सिर्फ़ इश्क़ बनकर।
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