Sunday, 22 June 2025

इम्तिहान — एक और जनम, एक और वादा

अब इस रूहानी प्रेम कथा का अगला अध्याय वहाँ से शुरू होता है —
जहाँ पुनर्मिलन के बाद आत्माएं एक नई ज़िंदगी में जन्म लेती हैं,
पर इस जन्म में भी इम्तिहान हैं, वक़्त की कसौटियाँ हैं,
और एक बार फिर… वादा है — कि चाहे कुछ भी हो,
वो बिछड़ें तो सही, मगर फिर मिलें —
जैसे वादा खुद कायनात ने लिखा हो।

(A New Life, A New Vow)

उस रात की रौशनी
अब भी हमारे साथ थी,
हमने आँखें खोलीं
तो एक नया सवेरा था।

तेरा नाम
अब किसी और लफ़्ज़ में था,
मगर तेरी आँखों में
वही पहचानी सी बात थी।

मैं फिर किसी और देह में थी,
तेरे शहर में,
तेरे रास्तों के पास,
तेरे दिल की धड़कनों के बहुत क़रीब।

कभी मंदिर की घंटियों में
तू सुनता मुझे,
कभी बारिश की बूंदों में
मैं महसूस करती तुझे।

पर इस बार
वक़्त ने कुछ और ठाना था,
तेरी ज़िन्दगी में कोई और था,
मेरी मांग में किसी और की सिंदूर।

हम खामोश रहे,
पर रूहें फिर भी पुकारती रहीं,
हर मुलाक़ात में
एक अधूरा स्पर्श
फिर से जन्म लेता रहा।

हम मुस्कुराते रहे
दूसरों के लिए,
पर दिल के भीतर
वही पुराना तड़पता इश्क़
सिसकता रहा।

कभी तेरे हाथ से
एक किताब गिरी,
उसमें वही कविता थी
जो पिछली ज़िंदगी में मैंने लिखी थी।

तेरी आँखों में
आँसू थे,
मेरे होंठों पर
सिर्फ़ ख़ामोशी।

और उस शाम
जब हम दोनों एक ही मोड़ पर
एक ही वक़्त पर पहुँचे —
क़ायनात फिर ठहर गई।

ना तू कुछ बोला,
ना मैं,
बस रूहें
एक-दूजे के क़रीब आईं,
और हमने फिर से
एक वादा दोहराया:

"इस जनम नहीं,
तो अगले में सही —
मगर इस बार
बिछड़ने नहीं देंगे खुदा को भी।"

और फिर से हम लौट चले…
नई ज़िंदगी की ओर,
नई राहों पर,
पर दिलों में वही पुराना इश्क़ —
अमर, अविचल,
जैसे रूहों की ज़ुबान में लिखा गया हो।


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