तेरी आँखों में
रातें उतरती हैं
जैसे चाँद
किसी झील में नहाए।
तेरी पलकें —
भीगे हुए मौसम की तरह,
जैसे हर झपक में
इक राग बँधा हो।
तेरी मुस्कान
कोई गुलाब नहीं...
ख़ुद बहार है
जिस पर फूल मुस्कुराते हैं।
तेरे होंठ —
सुर्ख़ बारिश की पहली बूँद,
जिन्हें छूने से
शब्द भी पिघलते हैं।
तेरी बातों में
इत्र घुला है,
जैसे हवा भी
तेरे नाम की सिफारिश करे।
तेरा चेहरा —
कोई आईना नहीं,
जैसे सुबह ने
तेरी शक्ल ओढ़ ली हो।
तेरी चाल —
ग़ज़ल की लय लगती है,
हर क़दम पे
कई शेर गिर पड़ते हैं।
तेरी हँसी —
कंचन घंटियों की सरगम,
जिसे सुनकर
दिल, मंदिर बन जाता है।
तेरी ज़ुल्फ़ें —
कोहरे की परछाईं,
जिनमें मेरा हर ख्वाब
घूमता है, और खो जाता है।
तेरी आवाज़ —
जैसे रूह को छूती नर्म हवा,
जिसे सुनकर
सांसें भी रूककर सोचें —
"इश्क़ है क्या?"
तेरा नाम
जैसे अल्फ़ाज़ की रूह,
जिसे लिखूं तो
कविता बन जाए।
तेरी नज़ाकत
चाँदनी से भी हल्की,
जिसे देखने से
पलकों पे सवेरा ठहर जाए।
तेरी हर अदा —
मुझसे कुछ कहती है,
जैसे इश्क़
तेरे इशारों में बसा हो।
तेरे बिना —
हर चीज़ अधूरी,
और तेरे साथ —
हर लम्हा मुकम्मल।
तू नहीं तो
फूल भी कांटे लगें,
तू है तो
काँटे भी फूल लगें।
तू जिस रोज़
मुझे देख मुस्कुरा देती है —
उस रोज़
ज़िन्दगी मुझ पर मेहरबान हो जाती है।
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