वो पहली बार…
जब हाथ छुआ था,
और पूरी कायनात ठहर गई थी।
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तेरे पहले छू लेने का पल — अब भी मेरी रूह में सांस लेता है,
वो लम्हा...
छोटा सा था,
पर उसमें एक पूरी उम्र समा गई।
तेरा हाथ जब पहली बार मेरे हाथ से छुआ,
तो ऐसा लगा —
जैसे मेरे वजूद को पहली बार घर मिला हो।
जैसे सारी बेचैनियाँ,
तेरी उँगलियों की एक नरम थरथराहट में उतर आईं।
न कोई शब्द थे,
न कोई इज़हार —
बस वो एक छुअन,
और दिल की सारी धड़कनों का संगीत बन जाना।
तेरी उँगलियाँ जैसे रेशम —
और मेरी हथेली जैसे सदियों से
बस तुझे ही महसूस करने को तरसती रही हो।
मैंने उस पल को थाम लिया था —
जैसे कोई इबादत थामता है।
और शायद तूने भी…
उसी वक़्त मुझे थोड़ा-सा मान लिया था।
उसके बाद…
सब कुछ वही रहा,
पर मैं बदल गया।
मेरे चलने का ढंग,
मुस्कुराने की वजह,
और जीने का मतलब — सब कुछ।
अब जब कभी हवा मुझे छूती है,
मैं सोचता हूँ —
क्या ये फिर से तू तो नहीं?
तू कभी कहती नहीं —
पर उस एक स्पर्श में
जो तेरे मन की ख़ामोशी थी,
वो मुझे अब भी हर दिन सुनाई देती है।
उस दिन मैं समझ गया था —
इश्क़ सिर्फ देखने का नाम नहीं,
इश्क़ वो है…
जब एक हल्की सी छुअन
तुम्हें हमेशा के लिए किसी से बाँध दे।
तेरे पहले स्पर्श से जुड़ा,
अब तक तुझमें उलझा हुआ —
एक रूह।
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