Wednesday, 25 June 2025

हुस्न-ए-यार की तफ़सील

तेरी आँखों में

रातें उतर आती हैं,

जैसे चाँद

किसी झील में डूबा हो।


तेरी पलकों पे

ख़्वाब बसते हैं,

हर झपक में

इक नज़्म की सरगोशी है।


तेरी मुस्कान —

फूलों की ताबीर,

जिस पे बहारें

दस्तक देती हैं।


तेरे लब —

शफ़क़ की आख़िरी लाली,

जिन्हें देख

ग़ज़लें शर्म से झुक जाएँ।


तेरी बातों से

इक नर्म सी ख़ुशबू उठती है,

जैसे लफ़्ज़ों में

गुलाब पलते हों।


तेरा चेहरा —

आईना-ए-सुब्ह,

जिस पे रौशनी

दुआ बन के ठहरती है।


तेरी चाल —

एक बहर-ए-नाज़,

हर क़दम पे

क़ाफ़िये सज जाते हैं।


तेरी हँसी —

रवां गीतों की झंकार,

जिसे सुन

दिल साज़ सा बोल उठे।


तेरी ज़ुल्फ़ें —

रात का मख़मली आँचल,

जिनमें मेरी तन्हाइयाँ

पनाह पा जाती हैं।


तेरी आवाज़ —

रूह की दस्तक,

जिसे सुनकर

धड़कन भी सजदा कर दे।


तेरा नाम —

इक नातमाम शेर,

जिसे हर शायर

मुकम्मल करने को जिए।


तेरी नज़ाकत —

गुलों की सदा,

जिसे महसूस कर

हवा भी ठहर जाए।


तेरी हर अदा —

फ़न की तर्ज़ है,

हर इशारे में

इश्क़ का फ़लसफ़ा छुपा है।


तेरे बिना —

लम्हें भी ग़ाफ़िल,

तेरे साथ —

वक़्त भी मोहब्बत पढ़े।


तू नहीं तो

हर मंज़र अधूरा,

तू हो तो

हर साया भी नूरानी लगे।


जिस रोज़

तू हँस कर मुझे देखती है,

उस रोज़

क़िस्मत सज कर मेरे दर पे आती है।

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