तेरे अधरों को
जब मेरे अधरों ने
पहली बार छुआ था,
हिमालय की घाटियाँ
गूंज उठी थीं प्यार से।
ठंडी हवा ने
हमारा नाम लिया था,
धुंध ने चुपचाप
हमें ओढ़ लिया था।
तेरे होंठ
गर्म चाय की तरह,
मेरे होंठ
बर्फ से पिघलते रहे हर दफा।
नीचे घाटियाँ सो रही थीं,
ऊपर आसमान गवाह था,
हमारी सांसों में
इक गुमनाम सुकून बहा था।
तेरे होंठों की आंच
हवा से लड़ रही थी,
और मेरी रूह
तेरे चुंबन में झरनों सी बह रही थी।
उस उँचाई पर
जब वक्त ने थम जाना सीखा,
तेरे लबों से मिला मेरा होना,
जैसे पहाड़ों ने
पहली बार प्रेम देखा।
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