तेरे अधरों को
जब मेरे अधरों ने
पहली बार छुआ था,
बूंदों की लय में
कुछ अनकहा सा हुआ था।
बारिश की हर बूँद
हमसे लिपटने लगी थी,
भीगी पलकें
तेरा नाम लिखने लगी थीं।
हवा में खुमारी थी,
माटी से सौंधापन उठा,
तेरे होंठों की नमी में
मेरा वजूद भीग उठा।
भीगे बालों से
टपकती वो रैन,
लबों से लब
जैसे साज़ छेड़ दें कोई तान।
गगन गरजा,
धरती मुस्काई,
तेरी मुस्कान में
बिजली भी शरमाई।
तेरे चुंबन में
वो भीगी प्यास थी,
और हर बूंद
जैसे इश्क़ की तलाश थी।
बारिश की वो पहली रात
तेरे होंठों पर ठहर गई,
और मेरा दिल
सदियों के लिए
उसी एक पल में बह गया।
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