Wednesday, 4 June 2025

तुझमें भीग गया था मैं

 बरसात की उस रात... तुझमें भीग गया था मैं,


बारिश उस रात ज़्यादा तेज़ नहीं थी,

पर दिल की धड़कनों ने बहुत शोर किया।


हर बूँद जैसे तेरी आवाज़ बन गई थी,

और हवाओं में तेरा नाम घुलने लगा था।

मैं खिड़की के पास बैठा,

तेरी यादों की बारिश में भीगता रहा।


बूंदें गिरती रहीं —

कभी छत पर, कभी पत्तों पर,

और सबसे ज़्यादा —

मेरे दिल पर।


तेरा चेहरा उस रात बादलों से बनता मिटता रहा।

मैंने अपनी हथेली बाहर निकाली,

तो ऐसा लगा, जैसे तूने छू लिया हो —

नरम, भीगा हुआ,

और प्यार से भरा।


तू साथ होती उस रात...

तो मैं तुझे चुपचाप निहारता,

तेरी भीगी ज़ुल्फ़ों में उंगलियाँ फिराता,

और तुझसे कहता —

"देखो, बारिश भी हमें साथ देखना चाहती है।"


लेकिन तू नहीं थी।

बस तेरा एहसास था —

जो हर कोने से बोल रहा था,

हर बूँद से बह रहा था।


तब मैंने जाना —

कि इश्क़ जब सच्चा होता है,

तो वो मौसम में भी धड़कता है।

और तेरे बिना भी,

तू बहुत पास महसूस होती है।


उस रात मैं भीग गया था —

सिर्फ बारिश में नहीं,

तेरे ख़यालों में,

तेरे नाम में।


तुझसे भी ज़्यादा,

तेरी याद ने छू लिया था मुझे।


बरसते एहसासों का ख़त,

सिर्फ तेरा।




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