मेरी पहली नज़र के जादू को,
शब्दों से नहीं, शायद उस दिन मेरी चुप्पी ने सबसे ज़्यादा तुमसे बात की थी।
तुम सामने थीं — जैसे कोई कविता पहली बार जीवन में उतर आई हो।
मैंने देखा,
और उस एक नज़र में जैसे पूरी कायनात ने
एक साथ सांस लेना बंद कर दिया हो।
तेरी आँखों में जो चमक थी —
वो चाँदनी से नहीं,
किसी अधूरी दुआ के पूरी होने जैसी थी।
तू चल रही थी,
लेकिन मेरी दुनिया वहीं थम गई।
तेरी मुस्कान कोई आम हँसी नहीं थी,
वो शायद उस रोज़ का सबसे ख़ूबसूरत चमत्कार थी।
उस लम्हे में,
न मैं कुछ कह सका,
न तूने कुछ पूछा —
लेकिन नज़रों की उस बातचीत ने
कई जन्मों का परिचय लिख दिया।
तेरी आवाज़ सुनी तो लगा
जैसे किसी सूने दिल में बारिश की पहली बूँद पड़ी हो।
और उस दिन,
तेरी हर हरकत,
मेरे दिल पर कविता की तरह दर्ज़ होती गई।
तू गई,
लेकिन तेरी खुशबू रुक गई थी मेरे आसपास।
मैं देर तक उस गली में खड़ा रहा,
जहाँ पहली बार तू मेरी ज़िंदगी से टकराई थी।
अब हर बार जब खुद से मिलता हूँ,
तेरा नाम अपने अंदर गूंजता सुनता हूँ।
और सोचता हूँ —
क्या तुझे भी उस दिन कुछ वैसा ही महसूस हुआ था?
क्या तूने भी अपनी धड़कनों की चाल बदलती सुनी थी?
क्योंकि मैं तो…
उसी पहली मुलाक़ात में
तुझसे हमेशा के लिए जुड़ गया था।
तेरी उसी पहली नज़र का बंदा,
हमेशा का।
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