Wednesday, 4 June 2025

मेरी चाँद-सी जान के नाम

 मेरी चाँद-सी जान के नाम,


आज रात जब झील के किनारे बैठा,

तो पानी में कुछ ऐसा देखा…

जो पहले कभी न देखा था।

वहाँ एक अक्स था —

मखमली, शांत, और रौशन —

ठीक वैसे ही जैसे तुम।


झील की लहरों में

जब चाँद की रोशनी उतरी,

तो वो उजाला भी

तेरे चेहरे की याद दिलाने लगा।

मगर सच कहूँ?

उस झील में चाँद नहीं था,

वो तुम थीं।

बस तुम।


तेरी सूरत जैसे उस पानी पर उतरी हो —

बिना बोले बोलती हुई,

बिना छुए छूती हुई।

हर लहर तुझसे होकर गुजर रही थी,

और मेरा दिल...

हर बार थोड़ा और डूबता जा रहा था।


तेरा अक्स वहाँ था —

पर तू नहीं।

और शायद इसलिए

वो सबसे हसीन दर्द था

जो मैंने खुशी से महसूस किया।


कभी-कभी मुझे लगता है,

चाँद ने रोशनी तुझसे माँगी होगी,

झील ने गहराई तेरे खयालों से पाई होगी,

और मैंने...

मैंने तो सिर्फ तुझे चाहा है,

हर साँस में, हर शब्द में,

हर उस पल में जो तेरे बिना अधूरा लगता है।


तू होती है तो सब कुछ पूरा लगता है —

चाँद, झील, रातें, खामोशी… और मैं।


आज तेरे अक्स से आँखें भर आईं,

काश... एक बार उस झील में

तेरा हाथ पकड़ पाता,

तेरे होठों पर एक मुस्कान रख पाता,

और कह पाता —

कि मेरी दुनिया में,

चाँद नहीं —

तू ही सबसे ज़्यादा चमकता है।


तुझमें ही मैंने खुद को देखा है।

तुझमें ही मैंने इश्क़ को जाना है।

और तुझमें ही मैंने...

हर पल जीना चाहा है।


हमेशा तेरा,

तेरे अक्स में डूबा —

एक दीवाना।




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