Wednesday, 4 June 2025

सिंदूरी शाम के माहौल में

 

तेरे अधरों को
जब मेरे अधरों ने
पहली बार छुआ था,
सूरज ने सिंदूरी रंग से
हमारी रूहों को छुआ था।

क्षितिज पर लहराते
आग के बादल,
हमारी छाया में
पिघलने लगे थे।

तेरा चेहरा
उस शाम की तरह था,
जो दिन को विदा कहती है
मगर रात को भी थामती है।

तेरे होंठ—
सिंदूरी किरणों से सजे,
मेरे होंठ—
जैसे वो आख़िरी रौशनी पी जाएं।

हमने न कुछ कहा,
न कुछ सुना,
पर उस एक चुंबन में
सारा आसमान समा गया।

चिड़ियों की उड़ान
थम गई सी लगी,
और सूर्य ने
हमारे बीच कोई वादा रख दिया।

तेरे होंठों की गर्मी
शाम की आख़िरी किरण बन गई,
और मेरा दिल—
सिंदूरी प्यार से
हमेशा के लिए रंग गया।

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