जब पहली बारिश
तेरे साथ भीगी थी,
बारिश की बूँदों में
तेरी हँसी
गूंजी थी अब बरसात
सिर्फ़ भीगाती है,
भीतर कहीं
कोई आग जलाती है
पतझड़ में पत्तों की तरह
गिरा तेरा हर वादा,
हर शाख़ से
तेरी याद
झरती रही।
मैंने समेटा
हर सूखा लम्हा,
जैसे शाखों से तू
फिर से खिल जाएगी।
सर्दियों की धुंध में
तेरी आँखों की लौ
ढूँढता हूँ,
सांसों की भाप में
तेरी इबादत
लिखता हूँ।
पर उँगलियाँ
जैसे जम सी गई हैं,
तू कहीं से आवाज़ दे
ऐसा कोई इशारा नहीं
वसंत में तेरे साथ
जो फूल खिले थे,
तेरे जाते ही
मुरझा गए,
पर उनकी खुशबू
अब भी
तेरा नाम लेती है,
और हर बहार
तेरा इंतज़ार करती है।
गर्मी की धूप में
तेरी छाँव
नज़र नहीं आई,
छत की दीवारें
तेरे बिना
सुनसान हो गईं।
पंखा चलता रहा
जैसे कोई बात हो रही हो,
पर वो आवाज़
तेरी नहीं थी।
रातों ने साज़िशन
तेरा चेहरा
चाँद में छुपा रखा है,
तारे
तेरी मुस्कान
मुझे भूलने नहीं देते।
नींद अब आती नहीं
तेरे ख्वाबों के बिना,
जागना अब
मजबूरी नहीं,
इबादत बन गई है।
एक सवाल जो सन्नाटा बन गयी कभी पूछा नहीं तुझसे
तेरे जाने का सबब
क्योंकि जवाब में
तेरी ख़ामोशी ही मिलनी थी।
मैंने कब कहा तुझसे
कि तू लौट आ,
मैं तो बस
हर मोड़ पर
तेरे क़दमों की
आहट ढूँढता रहा
ऐसा कोई
ज़िन्दगी से
वादा तो नहीं था,
तेरे बिना
जीने का
इरादा नहीं था।
तेरे साथ जीने की एक हसरत से कुछ ज्यादा तो नहीं था
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