तेरे अधरों को
जब मेरे अधरों ने
पहली बार छुआ था
पूरी कायनात में जैसे
हलचल सा हुआ था
धड़कनों ने ठिठककर
साँसों से कुछ कहा था
पलकों के कोनों पे
एक सपना ठहर गया था
शबनमी वो पल
कितना भींगा भींगा सा था
वक़्त मखमल की मानिंद हाथों से धीरे धीरे सरक रहा था
तेरी साँसों की खुशबू
मेरे सांसों में घुल गयी थी
तेरे अधरों की तपिश से
मेरा तन मन जल रहा था
शब् की ख़ामोशी में
वो पहला चुम्बन ऐसे गूंजा था
जैसे आसमां पे सितारों ने
कोई धुन छेड़ा था
हम बिना लफ़्ज़ों के
सब कुछ कह गए थे
तेरे मेरे लब
इक दूजे में बह गए थे
उस एक लम्हे में
सब कुछ थम गया था
जब इश्क़ ने ख़ुद को
हम में पा लिया था
तेरी नज़दीकियों का
वो पहला इज़हार था
लबों की वो मुलाक़ात
एक मुकम्मल प्यार था
हर बार जब यादों में
वो पल लौट कर आता है
दिल मेरा फिर से
तेरे अधरों को चाहता है
कुछ अधूरे अलफ़ाज़
अब भी अधरों के पहरे हैं
तेरे होंठों से किये वादे
जैसे अधरों पर ठहरे हैं
तेरे होठों की पहली छुअन
अब तक साँसों में बसी है
तेरे धड़कन की सरगम मेरे धड़कन से मिली है
आज भी जब तू
मेरे पास चुपचाप आती है
तेरे अधरों की मिठास
मेरी प्यास को मिटाती है
इक लम्हा ही तो था वो,
मगर सदियों सा लगा था
जब उस पहले चुम्बन ने तेरे मेरे रूहों को छुआ था
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