झील में तेरा अक्स
उस चाँद का भरम दिलाता है
जो आसमां से उतर कर
झील में जगमगाता है।
उन लहरों को तेरे छूने से
जैसे कोई राग छिड़ जाता है
तेरी आँखों की शबनम में
सारा आसमाँ खो जाता है।
तेरा चेहरा जब झील में ढलता है
हर लहार खुद पर इतराता है
चाँद भी जब थमकर देखे तुझे
वो जैसे खुद को भूल जाता है।
तेरे होंठों की नरमी से
कितने कमल खिल जाते हैं
तेरी हँसी की परछाईं में
ये तारे झिलमिलाते हैं
तू जब पास हो मेरे,
तो वक़्त भी ठहर जाता है,
और ये सारा शमा
तेरी रूह से महक जाता है
रात की ख़ामोशी में भी
तेरे नाम की गूँज बस जाती है,
और चाँदनी… वो चुपचाप
तेरे ही रंग में नहाती है।
झील में चाँद सा तेरा अक्स
सिर्फ़ भरम नहीं, इबादत है,
इक पल को तुझमें डूब जाना
उस पल में जीने की हसरत है
No comments:
Post a Comment