कुछ धूमिल सी
स्मृतियाँ शेष हैं
गांव के अमराई की
जेठ की
तपती दुपहरी में भी
कैसी शीतलता
भर देती
तन मन में
जाने कैसी चपलता
हमारा चंचल मन
कैसे माने
कोई बंधन
भोर होते ही
निकल पड़ते हम
टोलियों में
झुण्ड के झुण्ड
गिल्ली डंडा
जाने कितने
सामान लिए
फिर धुप चढ़े
या लू चले
परवाह किसे
बजे कितने
किसने क्या
फरमान दिए
अमराई भी बौरा जाती
देख देख
सबकी शैतानी
हल्ला गुल्ला होता खूब
जम कर होती मनमानी
कोई नाचता पेड़ों पर
या होती दौड़ मेड़ों पर
गिल्ली उछलती मीलों दूर
कूद के लाते सब लंगूर
गुलेल की सटीक चाल से
अम्बिया गिरती डाल से
रोटी खाते अचार से
छाछ पीते धार से
फिर खेलते आनी जानी
घोघो रानी कितना पानी
होड़ लगती हर बात पर
कौन लट्टू नचाये हाथ पर
कूद कूद के डाल पर
हँसते अपने हाल पर
फिर ढेर लगते पत्थर के
खेलते पिट्टो दम भर के
जाने कहाँ से ताकत आती
जो खाते वो पच जाती
सांझ होते भगदड़ मच जाती
घर घर से हांक जो आती
छोड़ के हम अमराई
घर लौटते सारे भाई
अब ना गांव है ना अमराई
शहर की भीड़ वहाँ तक आई
अब अमराई के नाम पर
वहाँ कुछ ठूंठ अवशेष है
हमारे बचपन की यादों का
अब वही भग्नावशेष है
स्मृतियाँ शेष हैं
गांव के अमराई की
जेठ की
तपती दुपहरी में भी
कैसी शीतलता
भर देती
तन मन में
जाने कैसी चपलता
हमारा चंचल मन
कैसे माने
कोई बंधन
भोर होते ही
निकल पड़ते हम
टोलियों में
झुण्ड के झुण्ड
गिल्ली डंडा
जाने कितने
सामान लिए
फिर धुप चढ़े
या लू चले
परवाह किसे
बजे कितने
किसने क्या
फरमान दिए
अमराई भी बौरा जाती
देख देख
सबकी शैतानी
हल्ला गुल्ला होता खूब
जम कर होती मनमानी
कोई नाचता पेड़ों पर
या होती दौड़ मेड़ों पर
गिल्ली उछलती मीलों दूर
कूद के लाते सब लंगूर
गुलेल की सटीक चाल से
अम्बिया गिरती डाल से
रोटी खाते अचार से
छाछ पीते धार से
फिर खेलते आनी जानी
घोघो रानी कितना पानी
होड़ लगती हर बात पर
कौन लट्टू नचाये हाथ पर
कूद कूद के डाल पर
हँसते अपने हाल पर
फिर ढेर लगते पत्थर के
खेलते पिट्टो दम भर के
जाने कहाँ से ताकत आती
जो खाते वो पच जाती
सांझ होते भगदड़ मच जाती
घर घर से हांक जो आती
छोड़ के हम अमराई
घर लौटते सारे भाई
अब ना गांव है ना अमराई
शहर की भीड़ वहाँ तक आई
अब अमराई के नाम पर
वहाँ कुछ ठूंठ अवशेष है
हमारे बचपन की यादों का
अब वही भग्नावशेष है
बहुत ही सुन्दर...यादों का झरोखा ...!!
ReplyDelete