कैसे कहें
उस कोख को
जिसमें बीज
जीवन के
किसी की हैवानियत
ने बोया
और
कलंक का बोझ
उस अभागन ने ढोया
कलंकित
हमारी सोच है
जिसने
ईश्वर की रचना को
कलंक की
संज्ञा दी
उस हैवान की
हैवानियत का क्या
जिसने मर्यादा की
अवज्ञा की
नारी के सम्मान की
उसकी अस्मिता
और अरमान की
धज्जियाँ उधेड़ी
इतना सब कुछ
होने पर भी
उसका नाम
कलंक से
कोसों दूर है
और वह अभागन
कलंकिनी कहलाने को
मजबूर है
कैसी ये विडम्बना है
बिना किसी अपराध के
वो कलंकिनी बनी
और वो अपराधी
हर कलंक से बरी
क्यूँ नहीं
समाज
उसका वहिष्कार करता है
क्यूँ नहीं हर कोई
उसके कृत्यों का
तिरस्कार करता है
क्यूँ वो मासूम
उसकी हैवानियत का
बोझ ढोए
क्यूँ वो अकेली
खून के आंसू रोये
क्यूँ नहीं
उस हैवान को
उसकी हैवानियत की सज़ा
उसके अंदाज़ में दिया जाए
क्यूँ नहीं
आगे से
ऐसे हर हैवान को
मौत के हवाले किया जाए
फिर कभी कोई कोख
कलंकित ना हो
इसके लिए
लिजलिजे कायदों
की जगह
क़ानून सख्त करना होगा
नहीं तो
हर बार
यूँ ही निर्दोष
हैवानियत की बलि
चढ़ती रहेगी
और उसकी कोख
कलंकित होती रहेगी
रिक्तता रिस गयी गहरी ......
ReplyDeleteआकुल ब्याकुल मन ....पसरा है सन्नाट सा सन्नाटा ....
बहुत ही मार्मिक .....