Tuesday 7 August 2012

कलंकित कोख

कलंकित

कैसे कहें

उस कोख को

जिसमें बीज

जीवन के

किसी की हैवानियत

ने बोया

और

कलंक का बोझ

उस अभागन ने ढोया

कलंकित

हमारी सोच है

जिसने

ईश्वर की रचना को

कलंक की

संज्ञा दी

उस हैवान की

हैवानियत का क्या

जिसने मर्यादा की

अवज्ञा की

नारी के सम्मान की

उसकी अस्मिता

और अरमान की

धज्जियाँ उधेड़ी

इतना सब कुछ

होने पर भी

उसका नाम

कलंक से

कोसों दूर है

और वह अभागन

कलंकिनी कहलाने को

मजबूर है

कैसी ये विडम्बना है

बिना किसी अपराध के

वो कलंकिनी बनी

और वो अपराधी

हर कलंक से बरी

क्यूँ नहीं

समाज

उसका वहिष्कार करता है

क्यूँ नहीं हर कोई

उसके कृत्यों का

तिरस्कार करता है

क्यूँ वो मासूम

उसकी हैवानियत का

बोझ ढोए

क्यूँ  वो अकेली

खून के आंसू रोये

क्यूँ नहीं

उस हैवान को

उसकी हैवानियत की सज़ा

उसके अंदाज़ में दिया जाए

क्यूँ नहीं

आगे से

ऐसे हर हैवान को

मौत के हवाले किया जाए

फिर कभी कोई कोख

कलंकित ना हो

इसके लिए

लिजलिजे कायदों

की जगह

क़ानून सख्त करना होगा

नहीं तो

हर बार

यूँ ही निर्दोष

हैवानियत की बलि

चढ़ती रहेगी

और उसकी कोख

कलंकित होती रहेगी



















1 comment:

  1. रिक्तता रिस गयी गहरी ......
    आकुल ब्याकुल मन ....पसरा है सन्नाट सा सन्नाटा ....
    बहुत ही मार्मिक .....

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