Friday 3 August 2012

मेरे महबूब ....तेरे लिए (भाग-१)

आओ तुम्हारे अरमानों पे अपना मैं रंग चढ़ा दूं  
तुम्हारे सपनों में मैं अपने सपने मिला दूं 
खुशबू तेरे साँसों की अब मेरे साँसों में बसने लगी है 
आओ तुम्हारे धड़कन से अपना मैं धड़कन मिला दूं 
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मेरी जान मेरी सांस मेरी धड़कन
हर पल बेचैन होता है मेरा मन
तुम ऐसे बसी हो मेरे घर आँगन
तुमसे बिछड़ने से डरता है मेरा मन
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मोहब्बत को दिल में कभी छुपाना नहीं था 
हमारी मोहब्बत का दुश्मन ज़माना नहीं था 
फिर क्यों चाहत के फुल को खिलने नहीं दिया 
अपने दिल को मेरे दिल से क्यों मिलने नहीं दिया 
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कांटे ना हो तो गुलाब कभी खिल ना पायेगा 
गुलशन में उसका वजूद मिल ना पायेगा 
दर्द उस गुलाब को नहीं कांटो को होता है 
इतनी जतन करके भी वो उसकी मोहब्बत को रोता है 
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कसूर हमारा बस इतना था 
प्यार तुम्हारा जितना था 
सब हमने खुदा से मांग लिया 
चाहत में तेरे जो मर मिटना था 
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बरबाद होना तो एक बहाना था 
मकसद तो तेरे पास आना था 
अब ये दूरियां मिट गयीं हैं तो 
तुझे प्यार करने भी तो आना था
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तू प्यार है मेरा क्या पता है तुझको
तू संसार है मेरा क्या पता है तुझको
फिर क्यों दुहाई देता है ज़माने की मुझको 
जब मेरा प्यार क्या है ये पता है तुझको 
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खफा तुझसे होकर गुनाह नहीं करना मुझको 
हर घड़ी तेरे सजदे में है सर झुकाना मुझको 
मेरे महबूब तू मेरे दिल की वो अमानत है 
जिसको खुदा से भी है छुपाना मुझको 
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इन दूरियों को मैंने कभी पहचाना नहीं
मजबूरियों को मैंने कभी जाना नहीं 
कभी मिलना अगर है मुझको तुमसे 
तेरा नगर मुझसे अनजाना नहीं 
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इज़हार-ए-मोहब्बत भूलना तेरी इक अदा थी 
हम तो चाहत में तेरे कब के मर मिटे थे सनम 
तुने जो आह सुनी थी कभी वो मेरी सदा थी 
तेरी मोहब्बत के अफ़साने मेरी किस्मत में लिखे थे सनम 
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इन दूरियों को तुमने कैसे आने दिया 
हमारी नजदीकियों के अंदर 
यादें तो हम तब बनेंगे ना 
'गर हमने आपको पास से अपने जाने दिया 
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साँसों में तो तू मेरी बसती है जाने कब से 
मेरी रूह ने तेरी रूह को चाहा है सदियों से 
ज़माने की हमें परवाह नहीं क्या कहती है वो 
हम तो अपनी चाहत को चाहते हैं बरसों से 
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ख्यालों की दुनिया बड़ी हसीं है 
इस से बेहतर कोई जगह नहीं है 
अपने महबूब के दीदार के लिए 
नहीं तो हम कहीं मेरा महबूब कहीं है 
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हम खुश हैं तुमसे ख्यालों में मिलकर 
सबब दीदार का मालूम नहीं हमको  
डर है मिलकर कहीं खो ना दें तुमको 
इसलिए खुश हूँ तुमसे ख्यालों में मिलकर 
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क्या ये कम है कि हम मिले 
क्या ये गम है कि हम मिले 
मिलकर जुदा हुए तो जाना प्यार क्या है  
फिर मिलने की क्या ये वजह कम है 
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मुझसे मिलना तुम्हारा नियति थी हमारी 
नहीं मालूम था यूँ तड़पेंगे हम जिंदगी सारी 
मिलना और बिछड़ना बस में नहीं हमारी 
शायद इस के बाद फिर हो मिलने के बारी 














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