Friday, 31 August 2012

मेरे महबूब ....तेरे लिए (भाग-४)


अपने हर जख्म हर दर्द अब मेरे हवाले कर दो 
अपनी हर एक गम अपनी उलझनें मेरे हवाले कर दो 
मेरे होते अगर तुमको कोई दर्द सताए 
खुदा मेरा मुझको अभी इसी वक्त उठाये 
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अब प्यार को कोई और नाम देकर गुमराह ना कर खुद को 
तेरे दिल में जो मोहब्बत है उस से इनकार ना कर खुद को 
मुझे मालूम है तेरे एहसास जो है मेरे लिए तेरे दिल में 
उन एहसासों को अपनी मोहब्बत से भर दे मेरे दिल में 
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मैं दूर कहाँ तुमसे 
तुम्हे बस दूरी का एहसास होता है 
मेरी मोहब्बत मेरी वफ़ा 
हर वक्त तेरे दिल के पास होता है 
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अब कैसे बताएं तुझे कि 
हम तुझसे कितना प्यार करते हैं 
डरते नहीं इस जहाँ से हम 
सरेआम अपने प्यार का इकरार करते हैं 
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मेर्री मोहब्बत का 'गर ये सिला है 
कि इसके बदले तेरा नफरत मुझे मिला है 
चीर के सीना ही दिखा देता तुझको 
किस क़दर तुझसे मोहब्बत है मुझको 
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अब क्या कहूँ मैं तुझसे ए सनम 
मेरी मोहब्बत के वादों को झूठा बताया तुने 
मैंने तो अपने खून से लिखा था वो मज़मून 
जिसे बस रंगों का खेल बताया तुने 
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तो खुल कर अपने दिल की बात वो बताते क्यूँ नहीं 
'गर प्यार है उनके भी दिल में तो जताते क्यूँ नहीं 
मैं तो बाहें खोले कब से खड़ा हूँ उनकी राहों में 
पर वो हैं कि अब भी झिझकते हैं आने से मेरी बाहों में 
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अब शमा बुझने की बात ना करे 
चाँद अब काली कोई रात ना करे 
शर्म तो उनका गहना है 
पलकें झुका कर कह दें वो जो कहना है 
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वक्त ने हमसे कभी ये वादा लिया था 
वक्त से हम ना कभी टकरायेंगे 
'गर वक्त कहेगा ठहरने कभी
हम उस वक्त वहीँ ठहर जायेंगे
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मैं समेटता हूँ तुमको अपनी बाहों में 
तुम बिखरने की बात करती हो 
हर खुशी समेट ली है मैंने बस तुम्हारे लिए 
और तुम हो कि बस रोने की बात करती हो 

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