Tuesday 28 August 2012

मेरी कवितायेँ

ए मेरी कवितायेँ

तू  कहाँ 

ले जा रही है मुझे 

जाने अनजाने 

कितने लोगों से 

मिलवा रही है मुझे 

सबसे 

कितना स्नेह 

कितना अपनापन 

दिलवा रही है मुझे 

ये देख मेरी आँखें 

अक्सर छलक जाती हैं 

ख़ुशी के आंसू 

गालों पे ढलक आती हैं 

ईश्वर करे 

ऐसे ही लिखता रहूँ मैं 

हर रोज़ 

इक नयी कविता के साथ 

सबको दिखता रहूँ मैं 

सबका स्नेह 

सबका आशीष 

मुझे यूँ ही मिलता रहे 

हरदम 

मेरे चमन में 

कविताओं का फूल 

खिलता रहे 

हरदम 

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