Friday 31 August 2012

दिल की बात

दिल की बात

किस से बताएं

जाने क्यूँ लगता है

सबसे छुपायें

बात दिल की

दिल में ही रह गयी तो

साथ मेरे राख के

वो भी बह गयी तो

कोई कभी ये

जान नहीं पायेगा

मेरी हसरतों मेरी चाहतों को

पहचान नहीं पायेगा

फिर भटकेगी रूह मेरी

यूँ ही प्यासी प्यासी

मर के भी हिस्से में मेरे

आएगी उदासी

कोई होता जिस से

कर लेते दिल की बात

चीर के दिल अपना

दिखलाते अपने जज़्बात

ऐसा कोई

साथी नहीं है

दिया है पर

बाती नहीं है

अकेला हूँ मैं

इस पूरे जहां में

साथी अब अपना

ढूंढूं कहाँ मैं

साँसें किसी दिन

यूँ ही थम जायेंगी

रगों में लहू

सर्द हो जम जायेंगी

दिल की बात

मेरे दिल में ही रह जाएगी

राख बन कर मेरे साथ

ये भी बह जाएगी 

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