Sunday 5 August 2012

मेरे महबूब


जिंदगी के इस पड़ाव पर आकर

मिले हो जो तुम मुझको

मेरे महबूब

जिंदगी

सुहानी लगने लगी है

जिन रंगों से

मैं बेपरवाह था अब तक

उन रंगों से

मेरी महफ़िल

सजने लगी है

हर तरफ उदासी का

जो आलम था

खुशियाँ उनमें अब

बसने लगी हैं

ये रास्ते जो अब तक

अनजाने थे

मंजिलों से अपने

मिलने लगी हैं

गुलशन यहाँ

सारे वीरान थे

वहाँ मोहब्बत की कलियाँ

अब खिलने लगी हैं

घर गलियाँ चौबारे

सब सुनसान थे सारे

तेरे पायल की छम छम से

अब फिर से उनमे

संगीत सी बजने लगी है

शायद तुम मेरी दुआ थी

उस खुदा से

मेरी दुआ

अब कुबूल होने लगी हैं



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