Sunday 26 August 2012

संतानहीन

उनकी कोई संतान नहीं थी 

खुद से उनकी कोई पहचान नहीं थी 

कहने को रिश्तेदार बहुत थे 

दूर उनसे दिल के तार बहुत थे 

घर का हर एक कोना कोना 

रहता था हरदम सूना सूना 

ना कभी किसी के आने की आहट 

ना कभी उनके चेहरे पर मुस्कराहट 

ना कहीं किसी की आस है 

जाने आँखों में कैसी प्यास है 

बस अकेलेपन का अहसास है 

हरदम दिल उदास है 

ज़िन्दगी जैसे बोझ बनी है 

क्योंकि उस से हर रोज़ ठनी है 

काश उनका कोई अपना होता 

उनके आँखों में भी सपना होता 

किसी के लिए वो भी जीते 

पता ना चलता कैसे पल बीतते 

पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ कभी 

ना कोई आया ना कोई गया कभी 

अब उनकी आँखें पथरा चुकी हैं 

फिर भी हर आहट पर टिकी हैं 

अब जीवन के इस मोड़ पर आकर 

कुछ ऐसा नहीं जिसे खुश हों पाकर 

कौन जाने कब कैसी ज़रूरत आन पड़े 

कोई ऐसा नहीं जिनसे इनकी पहचान बड़े 

जाने कैसे ये जीवन सारा काटेंगे 

अपना दुःख जाने किस से ये बांटेंगे 

इनकी हालत देख कलेजा मेरा फटता है 

कहीं भी रहूँ इनसे ध्यान नहीं मेरा हटता है 

इनकी हर ज़रूरत का मैं ही ख्याल रखता हूँ 

ईश्वर के दिए सामर्थ्य से इनकी सेवा करता हूँ 

ईश्वर से मैं अपने हर वक्त प्रार्थना करता हूँ 

इनको हर खुशी दे सकूं यही याचना करता हूँ 












1 comment:

  1. बहुत सुन्दर !! ईश्वर आपकी इस सदिच्छा को सफल करें.... सुन्दर भावों वाली अति सुन्दर कविता

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