Friday 3 August 2012

पनघट

पनघट पे घट फूट गया

टूटी मन की आस

घट फूटे पानी बहे सब

बुझेगी कैसे प्यास


बुझेगी कैसे प्यास

पथिक की

जो है आवनहार

कर कर विनती

हारी गोरी

मिले ना घट इक बार


मिले ना घट इक बार

जो चाहे गोरी

कर ले विनती हज़ार

गोरी सोच सोच पगलाए

करेगी क्या उपचार


करेगी क्या उपचार

सखी री

जो अबकी सावन आये

मांग ना कोई उपहार


मांग ना कोई उपहार

जो ना घट दी इक बार

सखी री

कर ना अब इनकार


कर ना अब इनकार

सखी री

दे दे घट इक बार

प्यास बुझा लूं

अपने पथिक की

ले ले मेरे घर बार


ले ले मेरे घर बार

सखी री

प्यास बुझाऊँ जिस पथिक की

वही मेरे संसार


वही मेरे संसार

सखी री

दे दे घट इक बार

सखी री

दे दे घट इक बार 

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