Tuesday 7 August 2012

टूटे सपने टूटते नहीं


हर रात जाने कितनी आँखों में 
कितने सपने टूटते हैं 
टूट कर बिखरते हैं 
पर क्या 
कभी किसी ने जाना है 
हमसे छुप कर 
हर रात 
आने वाले भोर को 
सारे टूटे सपने सौंपता है 
फिर दिन का सूरज 
उन सपनों को 
अपनी किरणों से सिलकर 
शाम के हाथों 
रात तक पहुंचाता है 
और रात  
फिर उन्हीं  
आँखों में वही सपने सजाता है 
इसलिए टूटे सपनों का 
कभी सोग ना मनाओ ...
जब भी कभी सपनें टूटे ...
उन्हें अपनी रातों को दे आओ



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