हर रात जाने कितनी आँखों में
कितने सपने टूटते हैं
टूट कर बिखरते हैं
पर क्या
कभी किसी ने जाना है
हमसे छुप कर
हर रात
आने वाले भोर
को
सारे टूटे सपने सौंपता
है
फिर दिन का सूरज
उन सपनों को
उन सपनों को
अपनी किरणों से सिलकर
शाम के हाथों
रात तक पहुंचाता है
और रात
फिर उन्हीं
आँखों में वही सपने सजाता है
इसलिए टूटे सपनों
का
कभी सोग ना मनाओ
...
जब भी कभी सपनें टूटे
...
उन्हें अपनी रातों को दे आओ
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