Saturday 4 August 2012

भगवान या इंसान

मर्यादा पुरुषोत्तम

कहलाने की चाह में तुमने

सीता का अविश्वास किया

अग्नि परीक्षा ले ली उसकी

फिर उसको वनवास दिया

जीत के उसको स्वयंवर में

तुम भाग्य पर अपने इतराये

पर उसके विश्वास की लाज

तुम रत्ती भर ना रख पाये

मर्यादा इतनी प्रिय थी

अगर तो

मृग के पीछे क्यूँ भागे

क्यूँ नहीं जाना चाल दुश्मन की

क्यूँ तन्द्रा से नहीं जागे

तुमने गलती की सारी

फल भुगती वो बेचारी

फिर भी तुम

मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाये

विपदा सारे उसके

भाग्य में आये

समाहित हो गयी वो उसी धरा में

जिस से उसने जन्म लिया

पूरा कर गयी सात वचन वो

फेरे में जो उसने दिया

और तुमने ?

रघुकुल रीत सदा चली आई

प्राण जाए पर वचन ना जाये

की हुंकार भर भर कर

उसको दिए वचन कहाँ निभाए

अब तुम ही बोलो

हे श्री राम

सीता की इस व्यथा को सुनकर

तुमको भगवन

कैसे मानूं

तुम हम में से एक नहीं हो

इसका अंतर

कैसे जानूं






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