Wednesday 8 August 2012

मेरे महबूब ....तेरे लिए (भाग-२)


जाना कहाँ था तुम्हारी महफ़िल से 
शब ने चाँद को भी रोका है उसी दिल से 
आओ कि महफ़िल में बस तुम्हारा इंतज़ार है 
कह दो ना आज सब से कि तुम्हें मुझसे प्यार है 
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उदासी का कोई सबब हो तो जाने 
सब यही हैं तो फिर क्यूँ उदास हैं  
महफ़िलमुकामरास्ते और गम 
गए कहाँ तुम्हारी महफ़िल से हम 
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वफ़ा के हर इम्तेहां से मैं गुजर चुका हूँ 
आग से और शोलों से मैं लड़ चुका हूँ 
बाद इन सब के तुझको पाया हूँ मैं 
फिर क्यूँ सोचती हो कि पराया हूँ मैं 
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सितारों से तुम अपनी महफ़िल सज़ा लो 
हसरतों को अपने आज मुझसे मिला लो 
कोई हसरत बाकी ना रहे ये एहतियात कर लो 
हमारे मिलने की हर इन्तेज़ामात कर लो 
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तुम तो जाने कब से इस दिल में समाये थे 
आशियाँ हमने भी तुम्हारे दिल में ही बनाये थे 
फिर ना जाने किस खौफ में तुम्हारा दिल जी रहा था 
मोहब्बत सामने था और वो आंसुओं को पी रहा था 
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जो लहू बनकर तुम्हारी रगों में दौड़ता है 
वही हसरत-ए-दिल है तुम्हारा सनम 
जो तुम्हारा साथ नहीं छोड़ता है 
अब तो इस बात से इनकार मत करो तुम 
तुम्हारी हसरत ...तुम्हारा प्यार सब वही है 
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ज़रुरी नहीं कि हर इश्क दर्द के मुकाम से गुज़रे 
हमने तो बहारों को अपने इश्क की जश्न में बुलाया है 
आखिर इश्क है हमारा कोई मामूली बात नहीं 
फूलों और कलियों से कम और कोई सौगात नहीं 

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