हुस्न का रंग
तब निखर कर
आता है
जब वो इश्क से
टकराता है
फिर
चाँद भी
शरमाता है
इश्क में डूबे हुस्न से
और
शबाब भी
चढ़ आता है
इश्क में डूबे हुस्न पे
इस इश्क से ही तो
हुस्न पे नूर है
इसलिए मत इतराओ
ए हुस्न वालों
हमारा इश्क नहीं तो
तुम्हारा हुस्न बेनूर है
तब निखर कर
आता है
जब वो इश्क से
टकराता है
फिर
चाँद भी
शरमाता है
इश्क में डूबे हुस्न से
और
शबाब भी
चढ़ आता है
इश्क में डूबे हुस्न पे
इस इश्क से ही तो
हुस्न पे नूर है
इसलिए मत इतराओ
ए हुस्न वालों
हमारा इश्क नहीं तो
तुम्हारा हुस्न बेनूर है
क्या बात !!!!!सही है इश्क के बिना हुस्न बेमानी है
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