Tuesday 21 August 2012

हुस्न और इश्क

हुस्न का रंग

तब निखर कर

आता है

जब वो इश्क से

टकराता है

फिर

चाँद भी

शरमाता है

इश्क में डूबे हुस्न से

और

शबाब भी

चढ़ आता है

इश्क में डूबे हुस्न पे

इस इश्क से ही तो

हुस्न पे नूर है

इसलिए मत इतराओ

ए हुस्न वालों

हमारा इश्क नहीं तो

तुम्हारा हुस्न बेनूर है 

1 comment:

  1. क्या बात !!!!!सही है इश्क के बिना हुस्न बेमानी है

    ReplyDelete