Friday 3 August 2012

दफ्तर और साहब

दफ्तर और साहब का चक्कर

मेरी समझ में

अब तक ना आता है

साहब से दफ्तर चलता है

या फिर

दफ्तर साहब को चलाता है

कहते हैं

वो बड़ा कड़क अफसर था

समय और अनुशासन का पाबन्दी था

पर उसके शासन में

दफ्तर में बहुत मंदी था

अबकी जो अफसर आया है

आते ही धौंस जमाया है

अब औने पौने सब आते हैं

श्रद्धानुरूप भेंट चढ़ाते हैं

दफ्तर अब बहुत ही गन्दा है

चलता यहाँ सब धंधा है

सोच भी अब सबकी गन्दी है

दूर हुयी जो मंदी है

साफ़ सफाई बहुत होती है

पर ईमानदारी घुट घुट रोती है

अब कुछ कुछ मुझको समझ में आता है

दफ्तर से साहब नहीं

साहब से दफ्तर कहलाता है



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