दफ्तर और साहब का चक्कर
मेरी समझ में
अब तक ना आता है
साहब से दफ्तर चलता है
या फिर
दफ्तर साहब को चलाता है
कहते हैं
वो बड़ा कड़क अफसर था
समय और अनुशासन का पाबन्दी था
पर उसके शासन में
दफ्तर में बहुत मंदी था
अबकी जो अफसर आया है
आते ही धौंस जमाया है
अब औने पौने सब आते हैं
श्रद्धानुरूप भेंट चढ़ाते हैं
दफ्तर अब बहुत ही गन्दा है
चलता यहाँ सब धंधा है
सोच भी अब सबकी गन्दी है
दूर हुयी जो मंदी है
साफ़ सफाई बहुत होती है
पर ईमानदारी घुट घुट रोती है
अब कुछ कुछ मुझको समझ में आता है
दफ्तर से साहब नहीं
साहब से दफ्तर कहलाता है
मेरी समझ में
अब तक ना आता है
साहब से दफ्तर चलता है
या फिर
दफ्तर साहब को चलाता है
कहते हैं
वो बड़ा कड़क अफसर था
समय और अनुशासन का पाबन्दी था
पर उसके शासन में
दफ्तर में बहुत मंदी था
अबकी जो अफसर आया है
आते ही धौंस जमाया है
अब औने पौने सब आते हैं
श्रद्धानुरूप भेंट चढ़ाते हैं
दफ्तर अब बहुत ही गन्दा है
चलता यहाँ सब धंधा है
सोच भी अब सबकी गन्दी है
दूर हुयी जो मंदी है
साफ़ सफाई बहुत होती है
पर ईमानदारी घुट घुट रोती है
अब कुछ कुछ मुझको समझ में आता है
दफ्तर से साहब नहीं
साहब से दफ्तर कहलाता है
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