क्यूँ
हमारी चाहतें
बंदिशों का मोहताज़ होती हैं
सुना था
चाहतें
दिलों का सरताज होती हैं
फिर क्यों नहीं
उसे
बादशाहत का रूतबा मिलता है
आखिर क्यों
वो हरदम
ग़म में डूबा मिलता है
अगर
बंदिशें ही लगानी थीं
फिर
चाहतों को बनाया क्यूँ
लगाकर
इस पर बंदिशें
इसे नेमत में अपनी
गिनाया क्यूँ
ना होतीं चाहतें तो
ज़िन्दगी
कितनी आसां होती
ना किसी बात से
परेशां होती
न किसी बात पे
हैरां होती
चाहतें अगर बनायीं है
तो ए खुदाया
चाहा जिसको मैंने
उस से मुझको
क्यूँ नहीं मिलाया
हमारी चाहतें
बंदिशों का मोहताज़ होती हैं
सुना था
चाहतें
दिलों का सरताज होती हैं
फिर क्यों नहीं
उसे
बादशाहत का रूतबा मिलता है
आखिर क्यों
वो हरदम
ग़म में डूबा मिलता है
अगर
बंदिशें ही लगानी थीं
फिर
चाहतों को बनाया क्यूँ
लगाकर
इस पर बंदिशें
इसे नेमत में अपनी
गिनाया क्यूँ
ना होतीं चाहतें तो
ज़िन्दगी
कितनी आसां होती
ना किसी बात से
परेशां होती
न किसी बात पे
हैरां होती
चाहतें अगर बनायीं है
तो ए खुदाया
चाहा जिसको मैंने
उस से मुझको
क्यूँ नहीं मिलाया
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