Saturday 11 August 2012

मेरी उड़ान

थक चुका हूँ मैं

चाहतों का बोझ

ढोते ढोते

सब की उम्मीदों से

दबकर

घुट घुट कर

मर गयी हैं

मेरी अपनी इच्छाएं

जो अब शायद

कभी पूरी नहीं होंगी

मुक्त होना चाहता हूँ मैं

इन बंधनों से

उन्मुक्त उड़ना चाहता हूँ मैं

अपने आकाश में

अक्षुब्ध

जहां मेरी उड़ान

किसी दिशा से प्रभावित ना हो

ना ही कोई

हवा का झोंका

मेरी दिशा बदल सके

मैं उड़ता चला जाऊं निरंतर

बिना किसी विराम के

अपने अंतिम नीड़ की ओर

जो जाने कबसे

तिनके की राह तक रहा है

मुझे एक एक तिनका जोड़

उस नीड़ को सजाना है

ताकि

जब मैं थक कर

अपनी उड़ान से लौटूं

मेरी शय्या सजी रहे

अंतिम विश्राम के लिये

वहाँ कोई कलरव न हो

ना हो कोई कोलाहल

चाहे तो भोर भी ना हो

और ना कोई हलचल

बस एक सुकून हो

क्यूंकि

इस थकान के बाद

उस नींद में मुझे सोना है

जिसमें सोकर उठते नहीं हैं

बस चैन की नींद

सो जाना होता है

सबसे बेखबर

कभी नहीं उठने के लिये






6 comments:

  1. उड़ने दो उड़ने दो ...एक उन्मुक्त उड़ान मुझे भी उड़ने दो
    जहाँ ना हों बंदिशों का कोई घेरा
    जहाँ ना हों कोई उम्मीदों की डोरी

    बस एक ऊँची सी उड़ान ...उड़ने को ...अंजु (अनु)

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  2. kitni khoosurti se pehchana aapne "Panchi" ke hriday ko ....

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  3. ऐसे एहसासों को शब्दों में ढालने की काबिलियत हरेक में नहीं होती.
    बहुत सुन्दर. आभार... !!

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  4. no words...speechless.....bilkul mere bhav mano apne lafzo me utar diye....behad khubsurat Prashantji......thak chuka hunmain cahaton ke bojh se

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