दो गज कपडे
की ही तो दरकार है
रुखसत होने के लिए
फिर ये
माल-ओ-सबाब
किस के लिये
ना कुछ लेकर आये थे
ना कुछ लेकर जाना है
फिर ये
झगड़े फसाद
किस के लिये
दो पल की तो
जिंदगी है
जी लो इसको
सब के लिये
गम ना रह जाए कोई
रुखसत के वक्त
किया क्या हमने
ज़माने के लिये
की ही तो दरकार है
रुखसत होने के लिए
फिर ये
माल-ओ-सबाब
किस के लिये
ना कुछ लेकर आये थे
ना कुछ लेकर जाना है
फिर ये
झगड़े फसाद
किस के लिये
दो पल की तो
जिंदगी है
जी लो इसको
सब के लिये
गम ना रह जाए कोई
रुखसत के वक्त
किया क्या हमने
ज़माने के लिये
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