Friday 10 August 2012

यादों के झरोखों से

आज सफर में

फुरसत में बैठा हूँ

तो यादों के झरोखों से

कितनी सारी यादें

झांक रही हैं

उन झरोखों पर पड़ी धुंध को

हाथों से हटाता हूँ तो

कितने सारे लम्हे

सामने से गुजर जाते हैं

यादों की अँधेरी गलियों से निकल कर

क्रम से खड़े हो जाते हैं

मेरी यादों में अपनी

उपस्थिति दर्ज कराने

और प्रतीक्षारत हो जाते हैं

उनसे होकर

मेरे गुजरने के लिये

सोचता हूँ आज जब

समय भी

मेरे साथ फुरसत में बैठा है तो

उन बीते लम्हों को

एक बार

फिर से जी लूं

कितना लम्बा समय निकल गया

हर पल

फिर भी यूँ लगता है

जैसे

अभी अभी

जिया हूँ मैं

बचपन की अठखेलियाँ

यौवन की रंगरेलियां

फिर उनसे मिलना

हमारे प्यार के

फूल का खिलना

मिलना फिर

मिलकर बिछडना

हंसना रोना

पाना खोना

लड़ना पछताना

रूठना मनाना

सब

अभी अभी तो

जिया हूँ मैं

जाने कितनी ऋतुएं बीतीं

पर आज भी

हर वसंत की खुशबू

मेरी साँसों में घुली है

हर बारिश के छीटों से

मेरी यादें आज भी धुली हैं

किसी भी जेठ की तपन

मुझको नहीं भूली है

कभी सुख का सूरज चमका

तो कभी दुःख के बादल छाये

जाने कैसे कैसे मोड़

इस जिंदगी में आये

आज उन सब यादों की

टूटी फूटी तस्वीरें

जुड़कर

एक कोलाज बन गयी है

यादों के झरोखों से

दिखने वाली

मेरी जिंदगी की कोलाज






No comments:

Post a Comment