चाहतों का बोझ
ढोते ढोते
सब की उम्मीदों से
दबकर
घुट घुट कर
मर गयी हैं
मेरी अपनी इच्छाएं
जो अब शायद
कभी पूरी नहीं होंगी
मुक्त होना चाहता हूँ मैं
इन बंधनों से
उन्मुक्त उड़ना चाहता हूँ मैं
अपने आकाश में
अक्षुब्ध
जहां मेरी उड़ान
किसी दिशा से प्रभावित ना हो
ना ही कोई
हवा का झोंका
मेरी दिशा बदल सके
मैं उड़ता चला जाऊं निरंतर
बिना किसी विराम के
अपने अंतिम नीड़ की ओर
जो जाने कबसे
तिनके की राह तक रहा है
मुझे एक एक तिनका जोड़
उस नीड़ को सजाना है
ताकि
जब मैं थक कर
अपनी उड़ान से लौटूं
मेरी शय्या सजी रहे
अंतिम विश्राम के लिये
वहाँ कोई कलरव न हो
ना हो कोई कोलाहल
चाहे तो भोर भी ना हो
और ना कोई हलचल
बस एक सुकून हो
क्यूंकि
इस थकान के बाद
उस नींद में मुझे सोना है
जिसमें सोकर उठते नहीं हैं
बस चैन की नींद
सो जाना होता है
सबसे बेखबर
कभी नहीं उठने के लिये
उड़ने दो उड़ने दो ...एक उन्मुक्त उड़ान मुझे भी उड़ने दो
ReplyDeleteजहाँ ना हों बंदिशों का कोई घेरा
जहाँ ना हों कोई उम्मीदों की डोरी
बस एक ऊँची सी उड़ान ...उड़ने को ...अंजु (अनु)
Adwitiya ......
ReplyDeletekitni khoosurti se pehchana aapne "Panchi" ke hriday ko ....
ReplyDeleteऐसे एहसासों को शब्दों में ढालने की काबिलियत हरेक में नहीं होती.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर. आभार... !!
Adwitiya ......
ReplyDeleteno words...speechless.....bilkul mere bhav mano apne lafzo me utar diye....behad khubsurat Prashantji......thak chuka hunmain cahaton ke bojh se
ReplyDelete