Friday 29 June 2012

हम क्यूँ उनका बचपन छीने

हम क्यूँ उनका बचपन छीने 

वो भी तो उस पल को जी लें 

जिसमें ना कोई फिकर है 

ना कोई चिंता है 

बस भोला सा बचपन है 

और मासूम सी दुनिया है 

क्योंकि उनके सर पर कोई हाथ नहीं 

कहने को कोई साथ नहीं 

हमने उनका बचपन छीना है 

उनसे चुराया उनका खिलौना है 

जिस बचपन को पढ़ाना था 

उसको काम पर लगाया है 

कलम पेन्सिल की जगह

हाथ में औजार धराया है 

जिस आंच से हम घबराते हैं 

उस आंच में उनको झोंका है 

खेल के मैदानों में 

खेतों में खलिहानों में 

गुड्डे गुड़ियों के खेल में 

नाना जी की रेल में 

अब भी उनका दिल लगता है 

पर पापी पेट की खातीर 

वो बच्चा मजूरी करता है 

क्या हम उनके मुजरिम नहीं 

अब इस ज़ुल्म को हटाना होगा 

हमें उनका बचपन लौटाना होगा 



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