हम क्यूँ उनका बचपन छीने
वो भी तो उस पल को जी लें
जिसमें ना कोई फिकर है
ना कोई चिंता है
बस भोला सा बचपन है
और मासूम सी दुनिया है
क्योंकि उनके सर पर कोई हाथ नहीं
कहने को कोई साथ नहीं
हमने उनका बचपन छीना है
उनसे चुराया उनका खिलौना है
जिस बचपन को पढ़ाना था
उसको काम पर लगाया है
कलम पेन्सिल की जगह
हाथ में औजार धराया है
जिस आंच से हम घबराते हैं
उस आंच में उनको झोंका है
खेल के मैदानों में
खेतों में खलिहानों में
गुड्डे गुड़ियों के खेल में
नाना जी की रेल में
अब भी उनका दिल लगता है
पर पापी पेट की खातीर
वो बच्चा मजूरी करता है
क्या हम उनके मुजरिम नहीं
अब इस ज़ुल्म को हटाना होगा
हमें उनका बचपन लौटाना होगा
वो भी तो उस पल को जी लें
जिसमें ना कोई फिकर है
ना कोई चिंता है
बस भोला सा बचपन है
और मासूम सी दुनिया है
क्योंकि उनके सर पर कोई हाथ नहीं
कहने को कोई साथ नहीं
हमने उनका बचपन छीना है
उनसे चुराया उनका खिलौना है
जिस बचपन को पढ़ाना था
उसको काम पर लगाया है
कलम पेन्सिल की जगह
हाथ में औजार धराया है
जिस आंच से हम घबराते हैं
उस आंच में उनको झोंका है
खेल के मैदानों में
खेतों में खलिहानों में
गुड्डे गुड़ियों के खेल में
नाना जी की रेल में
अब भी उनका दिल लगता है
पर पापी पेट की खातीर
वो बच्चा मजूरी करता है
क्या हम उनके मुजरिम नहीं
अब इस ज़ुल्म को हटाना होगा
हमें उनका बचपन लौटाना होगा
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