Friday 29 June 2012

हमारी परियां

याद है जब हम तुम साथ चले थे

सपनों की मंज़िल की ओर 

कितने सपने कितने अरमान 

इन आँखों में सजाये थे 

फिर कहीं से दो नन्हीं परियाँ 

मखमल से पंख लगा कर 

हमारे सपनों को लेकर उड़ चलीं 

उनकी उड़ान से बेखबर हम 

नन्हीं परियों को बढ़ता देख

अनजान रहे 

न जाने कब 

हमारी दो नन्हीं परियों ने उड़ते उड़ते 

नया आसमान नयी मंज़िल 

नयी दिशाएँ ढूंढ लीं 

अपने आसमान में उड़ने का सुख 

उनको मिला तो 

नए जोश और नयी उमंग से 

एक नयी उड़ान पर निकल पड़ीं 

उड़ते उड़ते सपनों की दुनिया से 

उन दोनों के सपनों का राजकुमार 

अनगिनत खुशियों के खजाने संग 

उनसे आकर मिला 

उनसे मिलकर 

दोनों परियाँ 

अपनी अपनी दुनियाँ बसाने को 

एक नयी उड़ान पर निकल पड़ीं 

हम तुम जैसे साथ चले थे 

फिर उन राहों पर अकेले रह गए 

अपनी दुनिया अपनी मंज़िल 

अपने आप में समेटे हुये 

रात दिन अपनी परियों की 

अपने आसमान में राह तकते हुये 

काश कि वो उड़ते उड़ते एक बार फिर 

हमारे आँगन में उतर आयें 

हम जी भर के देख लें उनको 

फिर चाहे वो उड़ जाएँ

1 comment:

  1. for all the daughters......amazing poem......speechless

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