Thursday 28 June 2012

वो अप्सरा



आज मैंने उसे पहली बार देखा

उसके चेहरे की मासूमियत को 

उसकी आँखों की गहराई को 

उसके कपोलों पे खेलते बालों को

उसके होठों पे मचलते मुस्कान को

मैं भौंचक बैठा देखता रहा

वो इंसान नहीं हो सकती है

शायद ऊपर बैठा खुदा भी

यही सोचता होगा

उसकी खूबसूरती को बस

खुबसूरत कहना काफी ना था

उसकी खूबसूरती

खुबसूरत लफ्ज़ के दायरे से कहीं ज्यादा थी

उसकी आँखों की गहराई से

झील भी शर्माती है

उसके चेहरे की ताज़गी से

भोर भी लजाती है

उसके रसीले होंठ

रस्भरों को भरमाती है

उसके गालों की लाली

शाम के सूरज को जलाती है

वो अप्सरा ही है कोई

जो आसमान से उतर कर

ज़मीन पर

हम इंसानों को रिझाने आयी है

अब तक मुझको ये यकीं नहीं

कि वो सचमुच इंसान ही है

कोई अप्सरा नहीं




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