Thursday 28 June 2012

मेरा बचपन

क्यों पहना हुआ है ये मुखौटा मैंने

मुझमें जो मैं है

अक्सर पूछता है मुझसे 

क्यूँ मैं ओढ़े रहूँ अपने ऊपर 

दिखावे का ये बोझ

मेरे अन्दर का जो बच्चा है

वो रह रह कर 

मुझसे बाहर निकलने की जिद्द करता है

क्या करूँ मैं उसकी निश्छल अबोध मांगो का 

आस में उसकी हर पल मुझको तकती आँखों का

वो रंग बिरंगी तितलियों के पीछे भागना चाहता है 

बारिशों में कागज़ की नाव चलाना चाहता है 

बनती इमारतों में लगे ईंटों के ढेर से 

ईंटों के रेले लगाना चाहता है 

फिर गिरते हुए ईंटों के लहरों के संग

दौड़ लगाना चाहता है 

वो गर्मी की दोपहरी में 

माँ से आँखें चुरा कर 

बर्फ के गोले खाना चाहता है 

काले पीले खट्टे मीठे बर्फ के गोले

उसकी ठंढक और खटास

अब भी मुझे सिहरा जाती है 

जब भी बचपन की याद आती है

क्या करूँ मैं उस बच्चे का 

कैसे उतारूं अपने ऊपर से ये मुखौटा

जो मैंने पहना है

उस अल्हड़ अबोध बच्चे को छुपाने को

पर आतुर है मन 

सबको यह बताने को 

मत छीनो मुझसे मेरा बचपन

मेरा बचपन मुझको लौटा दो

रहने दो मुझको

उसी बचपन में

मत घसीटो मुझको

इस संसार के उलझन में


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