सड़कें कहाँ से आई हैं
और कहाँ तक जाएँगी
शायद कोई नहीं जानता
जाने भी कैसे
ये तो इक मुसाफिर को
उसकी मंजिल पे छोड़ कर
आगे बढ़ जाती है
फिर किसी और मुसाफिर को
उसकी मंजिल तक छोड़ने
और ये सिलसिला
यूँ ही चलता रहता है अनवरत
मुसाफिरों को
उनकी मंजिलों तक पहुंचा कर
सड़कें आगे बढ़ जाती हैं
किसी को बताये बिना
कि ये कहाँ से आयीं हैं
और कहाँ तक जाएँगी
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